पृष्ठ:उपहार.djvu/१३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[१]
अंगूठी की खोज

अंगूठी की खोज [१] चै तो पूर्णिमा ने संध्या होते होते, धरित्री को दूध से नहला दिया । वसन्ती हया के मधुर स्पर्श से सारा संसारे एक प्रकार के सुर की प्रान्न-विल्मृति में चेसुध सा हो गया। ग्राम को किसी डाल पर दिपी हुई मतवाली कोयल, पंचम स्वर में किसी मादक रागिनी को आलाप उठो। वृक्षों के झुरमुट के साथ चांदनी के टुकडे अठलियां करने लगे; परन्तु मेरे जीवन में न मुख था और न शान्ति। इस समय भी, जब कि संसार के सभीप्राणी प्रानन्द-विभोर हो रहे थे, मैं कम्पनी वाग के एक कोने में हरी-हरी दूब पर पड़ा हुआ अपने जीवन को विषमताया पर विचार कर रहा था। पेड़ की पत्तियों से छन-छन कर