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पुलिस ने इसे मय सोने की चेन के गिरफ्तार किया, और मुझसे चेन की शिनाख्त करवायी। मैंने वैसी ही पांच चेनों में से अपनी चेन पहचान ली। (अदालत की टेबिल पर रखी हुई चेन को हाथ में लेकर बैरिस्टर गुप्ता ने कहा) यह चेन मेरी है, मैंने खुद इसे बनवाई थी।"

बैरिस्टर गुप्ता का बयान खतम हुआ । मजिस्ट्रेट ने गम्भीर स्वर में अभियुक्ता की ओर देखकर पूछा-"तुमको बैरिस्टर साहब से कुछ सवाल करना है ?"

अभियुक्ता का चेहरा तमतमा उठा। वह तिरस्कार- सूचक स्वर में बोली-"जी नहीं; सवाल पूछना तो दूर की बात है, मैं तो इनका मुंह भी नहीं देखना चाहती।"

अभियुक्ता की इस निर्भीकता से दर्शकों के ऊपर आश्चर्य की लहर-सी दौड़ गयी।सबकी आँखें उसकी ओर फिर गयीं, बैरिस्टर गुप्ता की ओर भी लोगों का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित हुआ। उनके मुंह से एक प्रकार की दबी हुई अस्पष्ट मर-मर ध्वनि-सी निकल पड़ी।

मुकद्दमे में और भी रङ्ग आ गया । अब तो लोग अधिक ध्यान से मुकद्दमे की कार्रवाई को सुनने लगे।

बैरिस्टर गुप्ता की बातों का समर्थन पुलिस के दूसरे गवाहों ने भी किया । एक सराफ ने आकर कहा- मेरी दूकान से सोना लेकर बैरिस्टर साहब ने मेरे सामने ही यह चेन सुनार को बनाने के लिए दी थी।"

एक सुनार ने आकर बयान दिया-"यह चेन बैरिस्टर साहब के लिए मैंने ही अपने हाथ से बनाकर उन्हें दी थी।"