पृष्ठ:उपहार.djvu/९८

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फरक न पड़ जाता ? रहना तो मुझे बैंगले पर ही पड़ेगा और इन दिनो बैंगले के मालिकों का दिमाग तो सात आसमान पर ही रहता है. १००),७५) और ५०) से नी तो वह वात ही नहीं करते। फिर आज कल की आमदनी । किराये का कम से कम ५०) माहवारी ही रख लो तो। महीने में २००) हो जाते हैं। मुश्किल ही समझो, पर करत क्या अपने प्रयत्न भर तो मैंने शहर में हो रहे पाने की कोशिश की पर मेरी स्त्री न मानी । उसने, जब तक मैं मकार यदुल कर बंगले पर रहने न चला गया, मेरा खाना-पीन और सोना हराम कर दिया । उसकी एक जरा सी बची थी जिसके लिए वह इतनी व्याकुल रहती जैसे सारे शहर भर का प्लेग उसी पर फट पड़ेगा।

कचहरी कीछुट्टी थी । मैं अपने आफिस वाले कमरे में एक नौकर की सहायता से अपनी कानून की किताबें जमा रहा था। कमरे में कई अालमारियां थीं। मैं उन्हें साफ करवा के यहां अपनी पुस्तकें और अन्य वस्तुएं तरतीय वार रखवा रहा था। उन श्रालमारियों से रद्दी कागजों के साथ एक लिफाफा भी वजन में जरा भारी होने के कारण सट से नीचे गिर पड़ा । मैंने उसे गिरते देखा किन्तु उदासीन भाव से फिर अपने काम में लग गया। मैं कमरे से बाहर जाने लगा-लिफाफा फिर मेरे पैरी से टकराया इस बार मैंने उसे उठा लिया उठाकर देखा तो उस पर किसी का भी पता तो न था पर यह मजबूत डोरे से कस कर बंधा गया था और गांड के ऊपर चपड़े से सील लगी हुई थी। लिफाफे को उठाकर मैंने