पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४७९

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पचम सर्ग ? स्वर अरुझे, धुनि रुधि गई, कहाँ तान-लय-कूक हिय वीणा ते उठति है, एक मूक सी एक । लुप्त भई सब स्वरन की, झन-भकार-मरोर, मूक रुदन-कम्पन-मयी, हिय ते उठन हिलोर । वीणकार वीणा तजी, वीण तज्यो स्वर-भार, स्वरन नज्यो गायन-नियम, भयो रुदन-मचार । ४०० सोरठा स्वर अरुझे, लय मूक, तार-तार ढीले परे, हिय वेदना अचूक, हृदय विपची तै उठी । ४०१ प्राणन में फासी परी, पर् यो श्वास रुध्यो नाम-सस्मरण शुभ, प्रकट भयो दुख-द्वन्द । ४०२ जीवन में सुख-दु ख को, देख्यो यह हिसाब, भरी मिली दुख की बही, सुख की रिक्त किताब । ४६५