पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५९०

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कम्मिला आज निखिल लका के जन का, हिय-प्रतिबिम्बक बन कर मै,- धन्य हुआ हूँ, राम-चरण में श्रद्धाजलि अर्पण कर मैं, क्षत्रिय रूप धरे वन आए, देव जगद्गुरु प्राप भले, श्री चरणो की कृपा हो गई, भौतिकता-सन्ताप टले, दाह मिट गया, बरस रहा है, प्रभु का आर्य, कीजिए लक-द्वीप की भक्ति-भावना अगीकार। अनुकम्पा-नीहार, त्वम् धन्यासि अहो जगदम्बे, जनकसुते, वरदे, सीते, हे अनिगिते, अग्नि-शिखे, हे, राम धनुर्धर परिणीते, निष्ठा-पथ-दर्शिके, दीपिके, रामेन्द्रिय पति मनोरमे, राम नोदने, प्रतिहिसे, हे सदा लका-जन का, यह वन्दन स्वीकार करो, निज आशीर्वचनो से सबके-- यि मे पुण्य-विचार भरो । युद्ध - दुर्धर्ष क्षमे, लकेश्वर का,