पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/९८

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ऊम्मिला उत्सुक नयनो का मानो कहा, 1 "अवध बासिनी ललनाये है, सुत-बधुअो' की चोर बडी, अपनी आँखो में ले जाती, उन्हे उठा कर खडी खडी , इसीलिए वधुओ का दर्शन- आकर्षण-- तुम्हे न होगा, जानो निज गृह, बन्द है दर्शन ।" यो लक्ष्मण जननी ने बोले विहंस वचन, मैं धन्य हुई, नवल दुलहिनो के दर्शन की इच्छा और अनन्य हुई । (२६) मैं बोली कि 'अवध बालाएं चोर, पुरुष सब डाकू है, दूर-दूर की निधियाँ लूटे, ऐसे बडे लडाकू है अब विदेह की निधि दिखलाएं- आप उन्हे झटपट ले पाएँ, ऑखें तरस रही है, देख, कैसी है वे नव कलिकाएँ ।' रानी कौशल्या यह सुन कर मुसका के चुप साध रही, मात सुमित्रा ने धीरे से मेरी कोमल बॉह गही । (२७) किए दरस सीता के, वे है गौरव की गॅभीर-सी मूर्ति, उन्हे देख मन मे कुछ भय, कुछ आदर की होती है स्फूर्ति , सचमुच वे विदेह ललना है, गुरुता से उनकी मुख प्रखर-द्युति से आलोकित, ऑखो मे असि की छलना है किन्तु, अहा 1 लक्ष्मण-रानी को जब ऑखो भर के देखा, तब तो नेत्र उमड पाये यो, ज्यो बरसी हो अश्लेखा । तुलना है, ,