पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/११०

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आठवां दृश्य

(एकडराडी महल)

अनिरुद्ध--हाय, ऊषा, प्यारी ऊषा, तुम्हारे प्रेम-वन्धन मे बँधा हुआ यह अनिरुद्ध अब कारागार के बन्धन में बंधा हुआ है। यह वन्धन जितना तुच्छ है, उतना ही वह बन्धन पुष्ट और पवित्र है जिसमे यह वियोगी जकड़ा हुआ है:--

हम तो पहले से बंधे हैं प्रेम की तक्कसीर में ।
जोर जुल्फोसे जियादा कव है। इस जंजीर मे ॥

वाणा०-[प्रवेश करके ] सिपाहियो, मेरे शिकार को मेरे सामने हाजिर करो।

[सिपाहियों का जाना]
 

वाणा०--[स्वगत] संसार की मिट्टी का एक घरौदा, यह नही जानता है कि वह किस हिमालय के पाषाणोंसे टकराने की खड़ा हो रहा है । छोटा सा नाला यह नहीं समझता है कि वह किसी भयानक नद से कुश्ती लड़ने के वास्ते बढ़ता आरहा है -

खिलौने दोनों सूरज चाँद हैं जिसके जमाने में ।
हिमालय और विन्ध्याचल हैं जिसके एक निशानेमे।।
उसी से खेलने को एक बालक सिर उठाता है।
तअज्जुध है कि जुगनू सूर्य से आँखे मिलाता है ।।

[अनिरुद्ध का सिपाहियों के साथ आना]
 

क्यों जिद्दी लड़के, तुझे अपनी मौत का कुछ खयाल है ?