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अंक तीसरा
पहला दृश्य
(स्थान द्वारिकापुरी)
[रूक्मिणी और कृष्ण का प्रवेश]
रूक्षेम० नाथ, कितनी बार मैंने आप से कहा, परन्तु आप यानही नहीं देते हैं ! क्या आपके हृदय में अनिरुद्ध की ममता नहीं है ?
श्रीकृ०--प्रिये, मैं सब सुनचुका ! ग़ाफिल नहीं हूं। तुम्हें यह न भूल जाना चाहिए कि अनिरुद्ध की सहायता को उद्धव के साथ स्वयं बलदाऊ भैया गये हुए है !
रुक्मि०--यह मैं भी जानती हूं। परन्तु मेरा कहना तो यह है कि आप क्यों नही गये ?