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पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/४९

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सरयू०--गरुजी, श्लोक का या सल्लोक का ?

गोमती०--चुपमूर्ख, गुरुकी बात काटता है ? भस्म हाजायगा!

माधो०--"कराति सुलभ सर्व रामस्य महती खुरपा"

सरयू०--हैं ! खुरपा या कृपा ?

गोमती०--चुप बे। फिर गुरुकी बात काटी? भत्म होजायगा!

माधो०-इस सल्लोक का अर्थ यह है कि अपने भक्त पर करके जब रामजी उसे खुरपा देदेते है तो फिर उसे सारे पदार्थ सुलभ होजाते हैं, दुलेभ कुछ नहीं रहता। वो उस खुरपे से सब कुछ करसकता है । खुरपे से बगीचे में घास छीले. मिट्टी बोटे प्रथ्वी में दबाहुआ धन निकाले,चिमटेका कामले और कभी शैवों से झगड़ा होजाय तो शैवों के सरमें मारदे ।

सब--सत्य है, गुरुवाणी सत्य है।

माधो०--सुनो, सावधान होकर सुनो । आज रामचन्द्रजी के विवाह से सत्संगजी प्रारम्भ होगा :--

"आयान्तं दशरथंश्रुत्वा भानुकेतुं नृपोत्तमम् ।
सतुआनों कारयामास जनकः सेतूननेकशः॥

अर्थात् महाराज जनक ने जब भानुकेतु को आते सुना तब मतमोंके सेतु अनेक स्थानों में बंधवादिए । अर्थात् जब जनकजीने बहुत की बारातजी लाते सुना तब उस बारातको केतुजीके समान मानकर सतुओंजी के पुल बंधवा दिए, जिससे बारात डूषजाय ।

सरयू०--गुरुजी, रामायणजी में तो ऐसा नहीं कहा है !

माधो०-बच्चा, हम जो कहते हैं वह शास्त्र का वचन है। इतने पर भी सारे बराती तैरकर चले भाए, और महाराज