पृष्ठ:ऊषा-अनिरुद्ध.djvu/९९

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उग्र०:--और तुम अब दरवार के समय यह खबर सुनाने आये ? अब तक कहाँ थे।

सुबुद्धिः--राजकुमार को दूढ रहा था।

उग्र०:--वह कहीं नहीं मिले ?

सुबुद्धिः--नही महाराज।

उग्र०:--यह तो बड़े आश्चर्य की बात है । पहरेपर कौन था ?

सुबुद्धिः--सुदर्शन !

उग्र०:--तो उस को बुला मो, और उससे इस घटना का निर्णय करामो। [ मुबुद्धि जाता है ] आश्चर्य पर यह दूसरा आश्रय है कि सुदर्शन के होते हुए यह घटना घट जाय ।

[सुभुद्धि के साथ सुदर्शन का आना]
 

उग्र०--क्यों सुदर्शनजी, अनिरुद्ध के महल में कल राव तुम्हाराही पहरा था ?

सुदर्शन--हाँ महाराजा

उग्र०--तो बताओ अनिरुद्ध कहाँ हैं ?

सुदर्शन--मैंने उन्हें महल ही में छोड़ा था।

उग्र०--हैं ! छोड़ा था, छोड़ने का क्या कारण ? तुम्हारी तो वहाँ तईनाती थी।

सुह०--हाँ महाराज, किन्तु आधी रात के बाद मैं बहा है चला आया!

उग्र०--क्यों ?

सुद०--राजकुमार की माताजी ने स्वयं प्राकर मुझसे यह फरमाया कि तुम्हें नारदजी बुलारहे है।

उप्र०--फिर तुम वहाँ से हटगये ?