पृष्ठ:एक घूँट.djvu/२८

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एक घूँट


प्रमुख स्थान जैसा किसी अच्छे पत्र में मिलना असम्भव है। तुम्हारी खोपड़ी खाली! आश्चर्य! तुम अपनी मूर्खता से हानि उठा रहे हो। तुमको नहीं मालूम कि नंगी खोपड़ी पर प्रेत लोग चपत लगाते हैं।

वनलता––तो उसने भी चपत लगाया होगा?

चँदुला––नहीं-नहीं, (मुँह बनाकर) वह बड़ा भलामानुस था। उसने कहा––तुमलोग उपयोगिता का कुछ अर्थ नहीं जानते। मैं तुम्हें प्रति दिन एक सोने का सिक्का दूँगा और तब मेरा विज्ञापन तुम्हारी चिकनी खोपड़ी पर खूब सजेगा। सोच लो।

रसाल––और तुम सोचने लगे?

चँदुला––हाँ, किन्तु मैंने सोचने का अवसर कहाँ पाया? ऊपर से वह बोलीं।

रसाल––ऊपर से कौन?

चँदुला––वही-वही, (दाँत से जीभ दबाकर) जिनका नाम धर्मशास्त्र की आज्ञानुसार लिया ही नहीं जा सकता।

रसाल––कौन, तुम्हारी स्त्री?

चँदुला––(हँसकर) जी-ई-ई, उन्होंने तीखे स्वर से कहा––'चुप क्यों हो, कह दो कि हाँ! अरे पन्द्रह दिनों में एक बढ़िया हार! बड़े मूर्ख हो तुम।' मैंने देखा कि वह विज्ञापनवाला हँस रहा है। मैंने निश्चय कर लिया कि मैं मूर्ख तो नहीं-ही बनूँगा, और चाहे कुछ भी बन जाऊँ। तुरन्त कह उठा––हाँ

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