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साम्राज्य में वहीं सम्मान पावेंगे, जो मेरे वंशधरो को साधारणतः मिलता है।

विजय के हाथ से वह पत्र गिर पड़ा। विस्मय से उसकी आँखें बड़ी हो गई। वह मंगल की और एकटक निहारने लगा। मंगल ने कहा---क्या है विजय ?

पुछते हो क्या है! आज एक बड़ा भारी आविष्कार हुआ है, तुम अभी तक नहीं समझ सकें। आश्चर्य है। क्या इससे यह निष्कर्ष नहीं निकल सकता कि तुम्हारी नसो में वहीं रक्त हैं, जो हर्षवर्धन की धमनियों में प्रवाहित थे?

यह अच्छी दूर की सूझी ! कहीं मेरे पूर्व-पुरुषों को यह मंगल-सूचक यंत्र समझकर बिना जाने-समझे तो नहीं दे दिया गया था। इसमे...

ठहरो, इसको यदि मैं इस प्रकार समझूँ, तो क्या बुरा कि यह चन्द्रलेखा के वंशधरी के पास वंशानुक्रम से चला आया हो। साम्राज्य के अच्छे दिनों में इसकी आवश्यकता रही हो और पीछे यह शुभ समाचार' उस कुल के सब बच्चों के ब्याह होने तक पहनाया जाता रहा हो। तुम्हारे यहाँ इसका व्यवहार भी तो इसी प्रकार रहा है।

मंगल के सिर में विलक्षण भावनाओं की गर्मी से पसीना चमकने लगा। फिर उसने हँसकर कहा---वाह विजय ? तुम भी बड़े भारी परिहास-रसिक हो ! क्षण भर में मारी गम्भीरता चली गई, दोनों हँसने लगे।

६०:प्रसाद वाङ्मय