पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३
 


सिर न था जिससे पहिचाना जाता कि कौन है, मगर बदन के कपड़े बेशकीमती थे, हाथ में हीरे का जड़ाऊ कड़ा पड़ा हुआ था उंगलियों में कई अंगूठियाँ भी थीं, गर्दन के नीचे जमीन पर गिरी हुई मोती की एक माला भी मौजूद थी ।

बीर० : चाहे इसका सिर मौजूद न हो मगर गहने और कपड़े की तरफ खयाल करके मैं कह सकता हूं कि यह हमारे महाराज के छोटे लड़के सूरजसिंह की लाश है ।

एक लौंडी : यह क्या हुआ ? कुंअर साहब यहाँ क्योंकर आये और उन्हें किस ने मारा ?

बीर० : कोई गजब हो गया है, अब किसी तरह हम लोगों की जान नहीं बच सकती । जिस समय महाराज को खबर होगी कि कुंअर साहब की लाश बीरसिंह के बाग में पाई गई तो बेशक, मैं खूनी ठहराया जाऊंगा । मेरी बेकसूरी किसी तरह साबित नहीं हो सकेगी और दुश्मनों को भी बात बनाने और दुःख देने का मौका मिल जायगा । हाय ! अब हमारे साथ हमारे रिश्तेदार लोग भी फांसी दे दिये जायंगे । हे ईश्वर ! धर्मपथ पर चलने का क्या यही बदला है !!

अपनी-अपनी जान की फिक्र सभी को होती है, चाहे भाई-बन्द, रिश्तेदार हों या नौकर, समय पर काम आवे वही आदमी है, वही रिश्तेदार है, और वही भाई है । कुंअर साहब की लाश देख और बीरसिंह को आफत में फंसा जान धीरे-धीरे लौंडियों ने खिसकना शुरू किया, कई तो तारा को खोजने का बहाना करके चली गईं, कई 'देखें इधर कोई छिपा तो नहीं है' कहकर आड़ में हो गई और मौका पा अपने घर में जा छिपीं, और कोई बिना कुछ कहे चीख मार कर सामने से हट गई और पीछा देकर भाग गई । अगर किसी दूसरे की लाश होती तो शायद किसी तरह बचने की उम्मीद भी होती मगर यहां तो महाराज के लड़के की लाश थी-- नामालूम इसके लिए कितने आदमी मारे जाएंगे, ऐसे मौके पर मालिक का साथ देना बड़े जीवट का काम है । हां, अगर मर्दो की मण्डली होती तो शायद दो-एक आदमी रह भी जाते मगर औरतों का इतना बड़ा कलेजा कहां ? अब उस लाश के पास केवल बेचारा बीरसिंह रह गया । वह आधे घण्टे तक उस जगह खड़ा कुछ सोचता रहा, आखिर उस लाश को उठा कर उस तरफ चला जिधर के दरख्त बहुत ही घने और गुञ्जान थे और जिधर लोगों की आमदरफ्त बहुत कम होती थी ।