पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/१३

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आड़ में लिए बारहदरी की तरफ जा रहे है ।

मुनासिब समझ कर बीरसिंह वहां से हटा और उन आदमियों के पहिले ही बारहदरी में जा पहुंचा । बारहदरी के पीछे की तरफ तोशेखाना था । वह उसमें चला गया और गीले कपड़े उतार दिये । सूखे कपड़े पहिनने की नौबत नहीं आई थी कि रोशनी लिये वे लोग बारहदरी में आ पहुंचे ।

बीरसिंह केवल सूखी धोती पहिर कर उन लोगों के सामने आया । सभी ने झुक कर सलाम किया । इन आदमियों में दो महाराज करनसिंह के मुसाहब थे और बाकी के आठ महाराज के खास गुलाम थे । महाराज करनसिंह के यहां बीरसिंह की अच्छी इज्जत थी । यही सबब था कि महाराज के मुसाहब लोग भी इनका अदब करते थे । बीरसिंह की इज्जत और मिलनसारी तथा नेकियों का हाल आगे चलकर मालूम होगा ।

बीर० : (दोनों मुसाहबों की तरफ देख कर) आप लोगों को इस समय ऐसे आंधी-तूफान में यहां आने की जरूरत क्यों पड़ी ?

एक मुसाहब : महाराज ने आपको याद किया है ।

बीर० : कुछ सबब भी मालूम है ?

मुसाहब : जी हां, कुँअर साहब के दुश्मनों की निस्बत सरकार ने कुछ बुरी खबर सुनी है इससे बहुत ही बेचैन हो रहे हैं ।

बीर० : ( चौंक कर ) बुरी खबर ? सो क्या ?

मुसाहब : ( ऊँची सांस लेकर) यही कि उनकी जिन्दगी शायदन हीं रही ।

बीर० : ( कांप कर) क्या ऐसी बात है ?

मुसाहब : जी हां ।

बीर० : मैं अभी चलता हूं ।

कपड़े पहिरने के लिए बीरसिंह तोशेखाने में गया । इस समय यहां कोई भी लौंडी मौजूद न थी जो कुछ काम करती । बीरसिंह की परेशानी का हाल लिखना इस किस्से को व्यर्थ बढ़ाना है । तो भी पाठक लोग ऊपर का हाल पढ़ कर जरूर समझ गये होंगे कि उसके लिए यह समय कैसा कठिन और भयानक था । बेचारे को इतनी मोहलत भी न मिली कि अपनी स्त्री तारा का पता तो लगा लेता जिसे वह अपनी जान से भी ज्यादे चाहता और मानता था ।

बीरसिंह कपड़े पहिर कर महाराज के मुसाहबों और आदमियों के साथ