पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/१९

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ऊपर लिखी बारदात के तीसरे दिन आधी रात के समय बीरसिंह के बाग में उसी अंकुर की टट्टी के पास एक लांबे कद का आदमी स्याह कपड़े पहिरे इधर-से-उधर टहल रहा है । आज इस बाग में रौनक नहीं, बारहदरी में लौंडियों और सखियों की चहल-पहल नहीं, सजावट को तो जाने दीजिये, कहीं एक चिराग तक नहीं जलता । मालियों की झोपड़ी में भी अंधेरा पड़ा है बल्कि यों कहना चाहिए कि चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है । वह लाँबे कद का आदमी अंगूर की टट्टियों से लेकर बारहदरी और उसके पीछे तोशेखाने तक जाता है और लौट आता है मगर अपने को हर तरह छिपाये हुए है, जरा-सा भी खटका होने से या एक पत्ते के भी खड़कने से वह चौकन्ना हो जाता है और अपने को किसी पेड़ या झाड़ी की आड़ में छिपा कर देखने लगता है ।

इस आदमी को टहलते हुए दो घण्टे बीत गये मगर कुछ मालूम न हुआ कि वह किस नीयत से चक्कर लगा रहा है या किस धुन में पड़ा हुआ है । थोड़ी देर और बीत जाने पर बाग में एक आदमी के आने की आहट मालूम हुई । लांबे कद वाला आदमी एक पेड़ की आड़ में छिप कर देखने लगा कि यह कौन है और किस काम के लिए आया है ।

वह आदमी जो अभी आया है सीधे बारहरी में चला गया । कुछ देर तक वहां ठहर कर पीछे वाले तोशेखाने में गया और ताला खोलकर तोशेखाने के अन्दर घुस गया । थोड़ी देर बाद एक छोटा-सा डिब्बा हाथ में लिए हुए निकला और डाला बन्द करके बाग के बाहर की तरफ चला । वह थोड़ी ही दूर गया था कि उस लांबे कद के आदमी ने जो पहिले ही से घात में लगा हुआ था पास पहुँच कर पीछे से उसके दोनों बाजू मजबूत पकड़ लिये और इस जोर से झटका दिया कि वह सम्हल न सका और जमीन पर गिर पड़ा । लांबे कद का आदमी उसकी छाती पर चढ़ बैठा और बोला, "सच बता तू कौन है, तेरा क्या नाम है, यहां क्यों आया, और क्या लिये जाता है ?"

यकायक जमीन पर गिर पड़ने और अपने को बेबस पाने से वह आदमी बदहवास हो गया और सवाल का जवाब न दे सका । उस लांबे कद के आदमी ने