जरूरत न थी और लड़के को छाती से लगाये बाईं तरफ के एक दालान में पहुँचे जहाँ से होते हुए एक सहन में जाकर पास की बारहदरी में होकर छत पर चढ़ गए। ऊपर इन्हें दो लौंडियाँ मिलीं जो शायद पहिले ही से इनकी राह देख रही थीं। दोनों लौंडियों ने इन्हें अपने साथ लिया और दूसरी सीढ़ी की राह से एक कोठरी में उतर गईं जहाँ एक ने बाबू साहब से कहा, "अब बिना रामदीन खवास की मदद के हम लोग तहखाने में नहीं जा सकते। आज उसको राजी करने के लिए बड़ी कोशिश करनी पड़ी। वह बेचारा नेक और रहमदिल है इसलिए काबू में आ गया, अगर कोई दूसरा होता तो हमारा काम कभी न चलता। अच्छा, अब आप यहीं ठहरिये मैं जाकर उसे बुला लाती हूँ।" इतना कह वह लौंडी वहाँ से चली गई और थोड़ी ही देर में उस बुड्ढे खवास को साथ लेकर लौट आई।
इस बुड्ढे खवास की उम्र सत्तर वर्ष से कम न होगी। हाथ में पीतल की एक जालदार लालटैन लिए वहाँ आया और बाबू साहब के सामने खड़ा होकर बोला, "देखिए बाबू साहब, मैं तो आपके हुक्म की तामील करता ही हूँ मगर अब मेरी इज्जत आपके हाथ में है। मुझे मातबर समझ कर इस चोर दर्वाजे की ताली सुपुर्द की गई है। एक हिसाब से आज मैं मालिक की नमकहरामी करता हूँ कि इस राह से आपको जाने देता हूँ। मगर नहीं, सुन्दरी दया के योग्य है, उसकी अवस्था पर ध्यान देने से मुझे रुलाई आती है, और इस बच्चे की हालत सोच कर कलेजा फटा जाता है जो आपकी गोद में है। बेशक, मैं एक अन्यायी राजा का अन्न खा रहा हूँ। लाचार हूँ, गरीबी जान मारती है, नहीं तो आज ही नौकरी छोड़ने के लिए तैयार हूँ।"
बाबू साहब: रामदीन, बेशक तुम बड़े ही नेक और रहमदिल आदमी हो। ईश्वर तुम्हें इस नेकी का बदला देवे। अभी तुम नौकरी मत छोड़ो, नहीं तो हम लोगों का काम मिट्टी हो जाएगा। वह दिन बहुत करीब है कि इस राज्य का सच्चा राजा गद्दी पर बैठे और रिआया को जुल्म के पंजे से छुड़ावे।
रामदीन: ईश्वर करे ऐसा ही हो। अच्छा आप जरा-सा और ठहरें और इसी जगह बेखौफ बैठे रहें, मैं घण्टे-भर में लौट कर आऊँगा तब ताला खोल कर तहखाने में जाने के लिए कहूँगा क्योंकि महाराज अभी तहखाने में गये हुए हैं, वे निकल कर जालें तब मैं निश्चिन्त होऊँ। इस तहखाने में जाने के लिए तीन दर्वाजे हैं जिनमें एक तो सदर दर्वाजा है, यद्यपि अब वह ईंटों से चुन दिया गया है