बैठ कर कहा, "नहीं नहीं, उठने की कोई जरूरत नहीं, तुम आप कमजोर हो । हाय ! दुष्ट के अन्याय का कुछ ठिकाना है !! लो यह तुम्हारा बच्चा तुम्हारे सामने है, इसे देखो और प्यार करो ! घबड़ाओ मत, दो-ही-चार दिन में यहाँ की काया पलट हुआ चाहती है !!"
बाबू साहब ने उस लड़के को पलंग पर बैठा दिया । उस औरत ने बड़ी मुहब्बत से उस लड़के का मुँह चूमा । ताज्जुब की बात थी कि वह लड़का जरा भी न तो रोया और न हिचका बल्कि उस औरत के गले से लिपट गया जिसे देख बाबू साहब, लौंडियाँ और उस औरत का भी कलेजा फटने लगा और उन लोगों ने बड़ी मुश्किल से अपने को सँभाला । उस औरत ने बाबू साहब की तरफ देखकर कहा, "प्यारे, क्या मैं अपनी जिंदगी का कुछ भी भरोसा कर सकती हूँ ? क्या मैं तुम्हारे घर में बसने का खयाल ला सकती हूं ? क्या मैं उम्मीद कर सकती हूँ कि दस आदमी के बीच में इस लड़के को लेकर खिलाऊंगी ? हाय ! एक बीरसिंह की उम्मीद थी सो दुष्ट राजा उसे भी फांसी दिया चाहता है !"
बाबू साहब : प्यारी, तुम चिंता न करो । मैं सच कहता हूँ कि सवेरा होते- होते इस दुष्ट राजा की तमाम खुशी खाक में मिल जायगी और वह अपने को मौत के पंजे में फँसा हुआ पावेगा । क्या उस आदमी का कोई कुछ बिगाड़ सकता है जिसका तरफदार नाहरसिंह डाकू हो ? देखो अभी दो घण्टे हुए हैं कि वह कैदखाने से बीरसिंह को छुड़ाकर ले गया ।
औरत : (चौंककर) नाहरसिंह डाकू बीरसिंह को छुड़ाकर ले गया ! मगर वह तो बड़ा भारी बदमाश और डाकू है ! बीरसिंह के साथ नेकी क्यों करने लगा ? कहीं कुछ दुःख न दे !!
बाबू साहब : तुम्हें ऐसा न सोचना चाहिये । शहर-भर में जिससे पूछोगी कोई भी न कहेगा कि नाहरसिंह ने सिवाय राजा के किसी दूसरे को कभी कोई दुःख दिया, हाँ, वह राजा को बेशक दुःख देता है और उसकी दौलत लूटता है । मगर इसका कोई खास सबब जरूर होगा । मैंने कई दफे सुना है कि नाहरसिंह छिपकर इस शहर में आया, कई दुखियों और कंगालों को रुपये की मदद की और कई ब्राह्मणों के घर में, जो कन्यादान के लिए दुःखी हो रहे थे, रुपये की थैली फेंक गया । मुख्तसर यह है कि यहाँ की कुल रिआया नाहरसिंह के नाम से मुहब्बत