के पास भी जाकर कुछ देर बैठा करते थे और वह उन्हें भाई के समान मानती थी। मैं अहिल्या को बीबी कह कर पुकारती थी। अहिल्या और बीरसिंह दोनों ही को राजा माना करते थे बल्कि अहिल्या ही के कहने से मेरी शादी बीरसिंह के साथ हुई।
साधु: अहिल्या का नाम अहिल्या ही था या कोई और नाम भी उसका था?
तारा: उसका कोई दूसरा नाम कभी सुनने में नहीं आया मगर एक दिन एक भयानक घटना के समय मुझे मालूम हो गया कि उसका एक दूसरा नाम भी है।
साधु: वह क्या नाम है?
तारा: साै मैं आगे चल कर कहूँगी, अभी आप सुनते जाइये।
साधु: अच्छा, कहो।
तारा: महारानी ने राजा से कई दफे कहा कि अहिल्या बहुत बड़ी हो गई है, इसकी शादी कहीं कर देनी चाहिए, मगर राजा ने यह बात मंजूर न की। थोड़े दिन बाद राजा के बर्ताव से महारानी तथा और कई औरतों को मालूम हो गया कि अहिल्या के ऊपर राजा की बुरी निगाह पड़ती है और इसी सबब से वे उसकी शादी नहीं करते।
साधु: हरामजादा, पाजी, बेईमान कहीं का! हाँ तब क्या हुआ?
तारा: यह बात रानी को बहुत बुरी लगी और इसके सबब कई दफे राजा से झगड़ा भी हुआ, आखिर एक दिन राजा ने खुल्लमखुला कह दिया कि अहिल्या की शादी कभी न की जायगी।
साधु: अच्छा, तब क्या हुआ?
तारा: यह बात रानी को तीर के समान लगी और अहिल्या का चेहरा भी सूख गया और उसने डर के मारे राजा के सामने जाना बन्द कर दिया। तीन-चार दिन के बाद अहिल्या यकायक महल से गायब हो गई। राजा ने बहुत ऊधम मचाया, कई लौंडियों को मारा-पीटा, कितनों ही को महल से निकाल दिया, रानी से भी बोलना छोड़ दिया मगर अहिल्या का पता न लगा।
साधु: क्या अभी तक अहिल्या का पता नहीं है?
तारा: आप सुने चलिये, मैं सब कुछ कहती हूँ। कई वर्ष के बाद एक दिन