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पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/७७

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जरूरी कामों से छुट्टी पा, स्नान-भोजन कर, दीवानखाने में जा बैठा। अपने मुसाहबों को, जो पूरे बेईमान और हरामजादे थे, तलब किया और जब वे लोग आ गये तो खड़गसिंह के नाम की एक चिट्ठी लिखी जिसमें यह पूछा कि 'आपने आज दर्बार करने के लिए कहा था, सो किस समय होगा?'

इस चिट्ठी का जवाब लाने के लिए सरूपसिंह को कहा और वह राजा से विदा हो खड़गसिंह की तरफ रवाना हुआ!

इस समय खड़गसिंह अपने डेरे में बैठे यहाँ के बड़े-बड़े रईसों और सरदारों में बातचीत कर रहे थे, जब दर्बान ने हाजिर होकर अर्ज किया कि राजा का एक मुसाहब सरूपसिंह मिलने के लिए आया है। खड़गसिंह ने उसके हाजिर होने का हुक्म दिया। सरूपसिंह हाजिर हुआ तो रईसों और सरदारों को बैठे हुए देख कर कुढ़ गया। मगर लाचार था क्योंकि कुछ कर नहीं सकता था। राजा की चिठ्ठी खड़गसिंह के हाथ में दी और उन्होंने पढ़ कर यह जवाब लिखा:

"जहाँ तक मैं समझता हूँ, आज दर्बार करना मुनासिब न होगा क्योंकि अभी तक इस बात की खबर शहर में नहीं की गई, इससे मैं चाहता हूँ कि दर्बार का दिन कल मुकर्रर किया जाय और आज इस बात की पूरी मुनादी करा दी जाय। दर्बार का समय रात को और स्थान आपका बड़ा बाग उचित होगा, दर्बार में केवल यहाँ के रईस और सरदार लोग ही बुलाए जाएँ। -खड़गसिंह

चिट्ठी का जवाब लेकर सरूपसिंह राजा के पास हाजिर हुआ और जो कुछ वहाँ देखा था अर्ज करने के बाद खड़गसिंह की चिट्ठी राजा के हाथ में दी। चिट्ठी पढ़ने के बाद थोड़ी देर तक राजा चुपचाप रहा और फिर बोला:

राजा: अब तो खड़गसिंह के हर एक काम में भेद मालूम होता है, दर्बार का दिन कल मुकर्रर किया गया, यह तो मेरे लिए भी अच्छा है मगर समय रात का और स्थान बाग, इसका क्या सबब?

सरूप॰: किसी के दिल का हाल क्योंकर मालूम हो? मगर यह तो साफ जानता हूं कि उसकी नीयत खराब है, जरूर वह भी अपने लिए कोई बन्दोबस्त करना चाहता है।

राजा: खैर, जो कुछ होगा, देखा जायगा, मुनादी के लिए हुक्म दे दो, हम भी अपने को बहादुर लगाते हैं! यकायकी डरने वाले नहीं, हाँ, इतना होगा कि बाग में हमारी फौज न जा सकेगी-खैर, बाहर ही रहेगी।