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कपालकुण्डला
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उधर खोजा, लेकिन वह कहीं न मिला। तब उसने पूर्व कुटीकी तरफ पलटकर जोरसे कपालकुण्डलाको पुकारा, लेकिन बारम्बार बुलाये जानेपर भी कपालकुण्डलाने कोई उत्तर न दिया। कापालिककी आँखें लाल और भौंहें टेढ़ी पड़ गयीं। वह तेजीसे कदम बढ़ाता हुआ गृह की तरफ बढ़ा। इस अवकाशमें एक बार नवकुमारने फिर छुटकारेके लिए जोर लगाया, लेकिन व्यर्थ।

ऐसे ही समय बालूके ऊपर बहुत ही समीप पैरकी ध्वनि हुई। यह ध्वनि कापालिककी न थी। नवकुमार ने नजर घुमाकर देखा, वही मोहिनी—कपालकुण्डला थी। उसके हाथोंमें खड्ग झूल रहा था।

कपालकुण्डलाने कोई उत्तर न दिया। नवकुमारने फिर पूछा—

कपालकुण्डलाने कहा—“चुप? बात न करना—खड्ग मेरे ही पास है—चोरी कर रखा है।”

यह कहकर कपालकुण्डला शीघ्रतापूर्वक नवकुमारके बंधन काटने लगी। पलक झपकते उसने उन्हें मुक्त कर दिया और बोली—“भागो, मेरे पीछे आओ; राह दिखा देती हूँ।”

यह कहकर कपालकुण्डला तीरकी तरह राह दिखाती आगे दौड़ी, नबकुमारने भी उसका अनुसरण किया।