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पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/३३

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:८:

आश्रम में

“And that very night—
Shali Romeo dear thee to Mantna”.
–Romeo and Juliet

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उस अमावस्याकी घोर अंधेरी रातमें दोनों ही जन एक साँससे दौड़ते हुए वनके अन्दरसे भागे। वन्यपथ नवकुमारका अजाना था, केवल सहचारिणी पोडशीके साथ-साथ उसके पीछे-पीछे जानेके अतिरिक्त दूसरा उपाय न था। लेकिन अंधेरी रातमें जङ्गलमें हर समय रमणीका पीछा करना कठिन है। कभी रमणी एक तरफ जाती थी, तो नवकुमार दूसरी तरफ। अन्तमें रमणीने कहा—“मेरा आँचल पकड़ लो।” अतः नवकुमार रमणीका आँचल पकड़ कर चले। बहुत दूर जानेपर वह लोग क्रमशः धीरे-धीरे चले। अंधेरेमें कुछ दिखाई न पड़ता था, केवल नक्षत्रलोकमें अस्पष्ट बालुका स्तूपका शिखर झलक जाता था और खद्योत-प्रकाशसे लक्ष्यका भास होता था।

कपालकुण्डला इस तरह पथिकको लिए हुए निभृत जंगलमें पहुँची। उस समय रातके दो पहर बीत चुके थे। जंगलके अन्दर अन्धकारमें एक देवालयका अस्पष्ट चूड़ा दिखाई पड़ रहा था। उसकी प्राचीर सामने थी। प्राचीरसे लगा हुआ एक गृह था। कपालकुण्डलाने प्राचीर द्वारके निकट होकर खटखटाया। बारम्बार

  1. अनुवादक की भ्रान्ति। मूलमें है:

    “And that very night—
    Shall Romeo bear thee hence to Mantua.”
    Romeo and Juliet.