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कपालकुण्डला
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करना पड़ा। इसके बाद नवकुमारकी अपनी पत्नीके साथ मुलाकात हो न सकी।

कुटुम्बियों द्वारा त्यक्त तथा जातिच्युत होकर रामगोविन्द घोष अधिक दिनों तक बंगालमें टिक न सके। कुछ तो इस कारणवश और कुछ राजदरबारमें उच्चपदस्थ होनेके लोभसे वह दिल्लीके महलमें जाकर रहने लगे। धर्मान्तर ग्रहण करनेपर उन्होंने सपरिवार मुस्लिम नाम धारण कर लिया था। राजमहल चले जानेके बादसे श्वसुर या पत्नीकी कोई भी खबर नवकुमारको न लगी। जानेका कोई साधन और आवश्यकता भी न थी। इसके बाद विरागवश नवकुमारने फिर अपनी शादी न की। इसीलिए कहता हूँ कि नवकुमारकी एक भी शादी नहीं हुई।

पुजारिन यह सब बात जानती न थी। उन्होंने मनमें सोचा कि—“कुलीनकी दो शादियोंमें हज ही क्या है?” उन्होंने प्रकट रूपमें कहा—“आपसे एक बात पूछनेके लिए आई थी और वह बात यह है कि जिस कन्याने आपकी प्राण-रक्षा की है, उसने परहितार्थ आत्मप्राण नष्ट किया है। जिस महापुरुषके पास अबतक यह प्रतिपालित हुई है, वह बड़े भयङ्कर स्वभावका है। उसके पास फिर लौटकर जानेमें जो दशा आपकी हुई थी, वही दशा इसकी होगी। इसके प्रतिकारका कोई उपाय क्या आप निकाल सकते हैं?”

नवकुमार उठकर बैठ गये। बोले—“मैं भी ऐसी ही आशङ्का कर रहा था। आप सब कुछ जानती हैं, इसका कोई उपाय कीजिये। मेरे प्राण देनेसे भी यदि कोई उपकार हो सके—तो उसपर भी राजी हूँ। मैं तो यह विचार करता हूँ कि मैं उस नरहन्ताके पास स्वयं चला जाउँ, तो शायद उसके प्राण बच जायेंगे।” पुजारिनने हँसकर कहा—“तुम पागल हो रहे हो।