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प्रथम खण्ड
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: १ :
सागर-संगममें
“Floating straight obedient to the stream,”
—Comedy of Errors
लगभग ढाई सौ वर्ष पूर्व माघ मासमें, एकदिन रातके अन्तिम प्रहरमें, यात्रियोंकी एक नाव गङ्गासागरसे वापस हो रही थी। पुर्तगाली और अन्यान्य नौ-दस्युओंके कारण उस समय ऐसी प्रथा थी कि यात्री लोग गोल बाँधकर नाव-द्वारा यात्रा करते थे। किन्तु इस नौकाके आरोही संगियोंसे रहित थे। उसका प्रधान कारण यह था कि पिछली रातको घोर बादलोंके साथ तूफान आया था; नाविक दिक्भ्रम होनेके कारण अपने दलसे दूर विपथमें आ पड़े थे। इस समय कौन कहाँ था, इसका कोई पता न था। नावके यात्रियोंमें बहुतेरे सो रहे थे। एक वृद्ध और एक युवक केवल जाग रहे थे। वृद्ध युवकके साथ बातें कर रहा था। थोड़ी देरतक बातें करनेके बाद वृद्धने मल्लाहोंसे