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द्वितीय खण्ड
 

सुन्दरी-प्रधान समझ और अनुभव कर सकेंगे। दोनों आँखें एकदम बड़ी-बड़ी नहीं हैं, लेकिन बड़ी ही बङ्किम सुरेखावाली हैं और उनमें बड़ी ही चमक है। उसका कटाक्ष स्थिर लेकिन मर्मभेदी है। यदि तुम्हारे ऊपर उसकी दृष्टि पड़े तो यही समझोगे कि वह तुम्हारे हृदय तकका हाल देख रही है। देखते-देखते उस मर्मभेदी दृष्टिसे भावान्तर हो जाता है, आँखें सुकोमल स्नेहमय रससे गली जाती हैं और कभी-कभी उसमें सुखावेशजनित क्लान्ति ही दिखाई देती है। मानो वह नयन नहीं, मन्मथकी स्वप्न-शय्या है। कभी लालसा विस्फारित मदनरससे झलझलाती रहती है और कभी उस लोल कटाक्षमें मानो बिजली कौंधती रहती है। मुखकी कान्तिमें दो अनिर्वचनीय शोभा हैं; पहली सर्वत्रगामिनी बुद्धि का प्रभाव, दूसरी महान् आत्मगरिमा। इस कारण जब वह मराल-जैसी ग्रीवा टेढ़ी कर खड़ी होती है, तो सहज ही जान पड़ता है कि, यह रमणीकुलराज्ञी है।

सुन्दरी की उम्र कोई सत्ताईस वर्ष की होगी, मानों भादों मासकी भरी हुई नदी। भादों मासके नदी-जलकी तरह रूपराशि झलझला रही है—उछली पड़ती है। वर्षाकी अपेक्षा नयनकी सर्वापेक्षा, उस सौन्दर्यकाबहाव मुग्धकर है। पूर्ण यौवन के कारण समूचा शरीर थोड़ा चंचल है, बिना वायुके नवशरत्‌की नदी जैसे मंथर चंचला होती है, ठीक वैसी ही चंचल; वह चंचलता क्षणक्षणपर नये-नये शोभाके विकासके कारण है। नवकुमार निमेषशून्य हो उस नित्य नव शोभा को निरख रहे थे।

सुन्दरी नवकुमार की निमेषशून्य अाँखें देखकर बोली—“आप क्या देखते हैं? मेरा सौन्दर्य!”

नवकुमार भले आदमी थे, अप्रतिभ होकर, शर्माकर उन्होंने अाँखें नीची कर लीं। नवकुमारको निरुत्तर देख अपरिचित रमणीने