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पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/७०

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तृतीय खण्ड
 

तैयार करना मेरे ऊपर छोड़ दीजिये? आपके आशीर्वादसे अवश्य कृतकार्य हूँगी; लेकिन एक आशंका है कि कहीं सिंहासनासीन होनेके बाद खुसरू मुझे इन दुराचारियों को….निकाल बाहर न कर दें।”

बेगम सहचरीका अभिप्राय समझ गयी। हँसकर बोली,—“तुम आगरेमें जिस उमराकी गृहिणी होना चाहोगी, वह तुम्हारा पाणिग्रहण करेगा। तुम्हारे पति पंचहजार मंसबदार होंगे।”

लुत्फुन्निसा सन्तुष्ट हुई। यही उसका उद्देश्य था। यदि राजपुरीमें सामान्य स्त्री होकर रहना हुआ, तो फूलोंपर घूमकर रस लेनेवाली भ्रमरी बननेसे क्या फायदा हुआ? यदि स्वाधीनता ही त्याग करना होता तो बालसखी मेहरुन्निसाकी दासी होनेमें ही क्या हर्ज था? इससे तो कहीं अधिक गौरवकी बात है कि किसी राजपुरुषके गृहकी गृहस्वामिनी बनकर बैठा जाये?

केवल इसी लोभसे लुत्फुन्निसा इस कार्यमें लिप्त न हुई। सलीम उसकी उपेक्षा कर जो मेहर के पीछे पागल हो रहे हैं, उसका उसे प्रतिशोध भी लेना है?

खान आजम आदि आगरे और दिल्लीके उमरा लुत्फुन्निसाके यथेष्ठ साधित थे। खान आजम अपने दामादके लिये उद्योग करेंगे इसकी भी पूरी आशा थी। वह और अन्यान्य उमरा राजी हो गये। खान आजमने लुत्फुन्निसासे कहा—“मान लो यदि हम लोग कृतकार्य न हुए तो हम लोगोंको अपने बचावकी भी कोई राह निकाल लेनी चाहिए।”

लुत्फुन्निसाने कहा,—“आपकी क्या राय है?” खानने कहा, कहासाँचा:Sic—‘उड़ीसाके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। केवल उसी जगह मुगलोंका शासन प्रखर नहीं है, उड़ीसाकी सेना हमारे हाथ में रहना आवश्यक है। तुम्हारे भाई उड़ीसाके मंसबदार हैं। मैं