सहारा पाने के लिये वह अनायास हाथ बढ़ा देता है। कबीर ने अपनी निर्गुण भक्ति के द्वारा यही आशा भारतीय जनता के हृदय में उत्पन्न की और उसे कुछ अधिक समय तक विपत्ति की इस अथाह जलराशि के ऊपर बने रहने की उत्तेजना दी, यद्यपि सहायता की आशा से आगे बढ़े हुए हाथ को वास्तविक सहारा सगुण भक्ति से ही मिला और कंवल राम-भक्ति ही उसे किनारे पर लाकर सर्वथा निरापद कर सकी। राम-भक्ति ने केवल सगुण कृष्ण-भक्ति के समान जनता की दृष्टि जीवन के प्रानंदोल्लास-पूर्ण पक्ष की ओर ही नहीं लगाई, प्रत्युत आनंद-विरोधिनी अमांगलिक शक्तियों के संहार का विधान कर दूसरे पक्ष में भी आनंद की प्राण-प्रतिष्ठा की। पर इससे जनता पर हाने- वाले कबीर के उपकार का महत्त्व कम नहीं हो जाता । कबीर यदि जनता को भक्ति की ओर न प्रवृत्त करते तो क्या यह संभव था कि लोग इस प्रकार सूर की कृष्ण-भक्ति अथवा तुलसी की र'मभक्ति आँखें मूंदकर ग्रहण कर लेते ? सारांश यह है कि कबोर का जन्म ऐसे समय में हुआ जब कि मुसलमानों के अत्याचारों से पीड़ित भारतीय जनता को अपने जीवित रहने की आशा नहीं रह गई थी और न उसमें अपने आपको जीवित रखने की इच्छा ही शेष रह गई घो। उसे मृत्यु या धर्मपरिवर्तन के अतिरिक्त और कोई उपाय ही नहीं देख पड़ता था। यद्यपि धर्मज्ञ तत्वज्ञों ने सगुण उपासना से आगे बढ़ते बढ़ते निर्गुण उपासना तक पहुँचने का सुगम मार्ग बताया है और वास्तव में यह तत्व बुद्धिसंगत भी जान पड़ता है, पर उस समय सगुण उपासना की निःसारता का जनता को परिचय मिल चुका था और उस पर से उसका विश्वास भी हट चुका था। अत. एव कबीर को अपनी व्यवस्था उलटनी पड़ी। मुमलमान भी निर्गुणो- पासक थे। अतएवं उनसे मिलते जुलते पथ पर लगाकर कबीर ने हिंदू जनता को संतोष और शांति प्रदान करने का उद्योग किया।
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