उससे तो यही जान पड़ता है कि उनके पास कोई आधार अवश्य था। परंतु जब तक उस आधार का पता नहीं लगता, तब तक मैं पुष्ट प्रमाणों के अभाव में इन संवतों को निश्चित मानने में असमर्थ है। और भी कई बातें हैं जिनसे इन संवतों को अप्रामाणिक मानने को ही जी चाहता है। इन पर आगे विचार किया जाता है । ___ यह बात प्रसिद्ध है कि कबीरदास सिकंदर लोदी के समय में हुए थे और उसके कोप के कारण ही उन्हें काशी छोड़कर मगहर जाना पड़ा था। सिकंदर लोदी का राजत्वकाल सन् १५१७ (संवत् १५७४) से सन् १५२६ (संवत् १५८३) तक माना जाता है। इस अवस्था में यदि कबीर का निधन संवत् १५०५ मान लिया जाय तो उनका सिकंदर लोदी के समय में वर्तमान रहना असंभव सिद्ध होता है। गुरु नानकदेवजी ने कबीर की अनेक साखियों और पदों को आदि-ग्रंथ में उद्धृत किया है। गुरु नानकजी का जन्म संवत् १५२६ में और मृत्यु संवत् १५८६ में हुई। रेवरेंड वेस्टकाट लिखते हैं कि जब नानक २७ वर्ष के थे, तब कबीरदासजी से उनकी भेंट हुई थी। नानकदेवजी पर कबीरदास का इतना स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है कि इस घटना को सत्य मानने की प्रवृत्ति होती है, जिससे कबीर का संवत् १५५६ में वर्तमान रहना मानना पड़ता है। परंतु संवत् १५०५ में कबोर की मृत्यु मानने से यह घटना असंभव हो जाती है। जिन दो हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर इस ग्रंथावली का संपादन हुआ है, उनमें से एक संवत् १५६१ की लिखी है। यदि कबीर जी की मृत्यु १५०५ में हुई तो यह प्रतिलिपि उनकी मृत्यु के ५६ वर्ष पीछं तैयार की गई होगी। ऐसा प्रसिद्ध है कि कबीरदासजी के प्रधान शिष्य और उत्तराधिकारी धर्मदासजी ने संवत् १५२१ में, जब कि कबीरदासजी की आयु ६५ वर्ष की थी, अपने गुरु के वचनों का संग्रह किया था। जिस ढंग से कबीरदासजी की वाणी
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