( ११५ ) सहज भाव सहज सहज सब कोउ कहै सहज न चीन्है कोय । जा सहजै साहेब मिलै सहज कहात्रै सोय ॥२४५।। सहजै सहजै सव गया सुत वित काम निकाम । एकमेक है मिलि रहा दास कीरा नाम ||२४६।। जो कछु आवे सहज में सोई मीठा जान । कड़वा लागै नीम सा जामें ऐंचातान ॥२४७॥ सहज मिलै सो दूध सम माँगा मिले सो पानि । कह कवीर वह रक्त सम जामें ऐंचातानि ॥२४८॥ मौन भाव भारी कहूँ तो बहु डरूँ हलका कहूँ तो झाठ । मैं का जानें पीव को नैना कळू न दीठ ।।२४९।। दीठा है तो कस कहूँ कहूँ तो को पतियाय । साँई जस तैसा रहो हरखि हरखि गुन गाय ॥२५०।। ऐसो अद्भुत मत कथो कथो तो धरो छिपाय । वेद कुराना ना लिखी कहूँ तो को पतियाय ॥२५॥ जो देखे सो कहै नहिं कहै सो देखै नाहि । सुनै सो समझा नहीं रसना द्वग श्रुति काहिं ॥२५२॥ वाद विवादे विप धना वोले बहुत उपाध । भौन गहे सवकी सहै सुमिरै नाम अगाध ॥२५३।। .. जीवन्मृत ( मरजीवा) मैं मरजीव समुंद्र का डुबकी मारी एक। मूठी. लाया ज्ञान की जामें वस्तु अनेक ॥२५॥
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