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पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१७९

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द्वितीय खंड शब्दावली कर्ता-निरूपण सव का साखी मेरा साई । ब्रह्मा विष्णु रुद्र ईश्वर ली औ अव्याकृत नाहीं। सुमति पचीस पाँच से कर ले यह सव जग भरमाया । अकार उकार मकार मात्रा इनके परे वताया। जागत सुपन सुषोपत तुरिया इनते न्यारा हाई । राजस तामस सात्विक निर्गुन इनतें आगे सोई। सुछम थूल कारन मह कारन इन मिल भोग वखाना। तेजस विस्व पराग आतमा इनमें सार न जाना। परा वसंती मधमा वैखरि चौवानी ना मानी। पाँच कोप नीचे कर देखो इनमें सार न जानी। पाँच ज्ञान औ पाँच कर्म की यह दस इंद्री जानो। चित सोइ अंतःकरण वखानों इनमें सार न मानो । कुरम सेस किरकिला धनंजय देवदत्त कहँ देखो। चौदह इंद्री चौदह इंद्रा इनमें अलख न पेखो। तत् पद त्वं पद और असी पद वाच लच्छ पहिचाने। जहद लच्छना अजहद कहते अजहद जहद वखाने । सत्गुरु मिल सत् शब्द लखानै सार सब्द विलगावै.। कह कवीर सोई जन पूरा जो न्यारा कर गावै ॥१॥ मेरी नजर में मोती आया है । कोइ कहे हलका कोइ कहे भारी दोनों भूल भुलाया है। ब्रह्मा विष्णु महेसर थाके तिनहूँ खोज न पाया है। सेस सारदा संकर हारे पढ़ रट बहु गुन । .गाया है। है तिल के तिल के तिल भीतर विरले साधू पाया है। चहुँ दल कमल तिरकुटी साजे ओंकार दरसाया है । ररंकार