( १८ ) अचानक एक दिन जाह्नवीकृल पर पड़ा पाया था। कमाली और कमाल इसी की संतान थे। शील और सदाचार एक दिन कबीर साहब ने सस्त्रीक एक थान बुनकर प्रस्तुत किया और बेचने की कामना से वे उसे लेकर घर से वाहर निकले। अभी कुछ दूर आगे बढ़े थे कि एक साधु ने सामने आकर कहा-वावा कुछ दे ! कवीर साहब ने आधा थान फाड़ दिया। उसने कहा-बावा, इतने में मेरा काम न चलेगा। कवीर साहब ने दूसरा अाधा भी उसको अर्पण किया और श्राप प्रसन्न वदन घर लौट आए । ___एक दिन कवीर साहब के यहाँ वीस पचीस भूखे फकीर आए। उस दिन उनके पास कुछ न था, इसलिये वे घव- राए । लोई ने कहा-यदि आज्ञा हो तो मैं एक साहूकार के बेटे से कुछ रुपए लाऊँ। उन्होंने कहा-कैसे ! स्त्री ने कहा-वह मुझ पर मोहित है। मैं पहुँची नहीं कि उसने रुपया दिया नहीं। कबीर साहब ने कहा-किसी तरह काम चलाना चाहिए लोई साहूकार के बेटे के पास पहुँची, रुपया लाई और रात में मिलने का वादा कर आई । दिन खाने खिलाने में बीता, रात हुई, सब ओर अँधेरा छा गया, झड़ वाँधकर मेंह वरसने लगा, रह रहकर हवा के झोंके जी कँपाने लगे। किंतु कवीर साहव को चैन न था, वे सब जान चुके थे। उन्होंने सोचा- जिसकी बात गई, उसका सब गया इसलिये वे पानी और हवा से न डरे । कस्मल ओढ़ाकर उन्होंने स्त्री को कंधे पर लिया और साहूकार के घर पहुँचे। साहूकार का लड़का तड़प रहा था। उसको पाया देख वह खिल उठा। किंतु जव उसने देखा कि न तो उसके पाँव कीचड़ से भरे हैं और न
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