( २०. ) लोगों को उपदेश, देते रहे हों, किंतु अधिकतर वे अपने विचारों को सीधी सादी वोलचाल की भाषा में भजन बनाकर और उन्हें गाकर प्रकट करते थे। उनके भजनों को देखिए, उनकी रचना अधिकांश प्रचलित गीतों के ढंग की है। वे स्वयं कहते हैं- वोली हमारी पूर्व की, हमें लखा नहिं कोइ । हमको तो सोई लखे, घर पूरव का होइ॥ मसि कागद तो छुयो नहिं, कलम गही नहिं हाथ । चारिहु जुग महात्म्य तेहि, कहि के जनायो नाथ ॥ कबीर वीजक, साखी १७७, १८१ उनके धार्मिक सिद्धांत क्या थे और वे लोगों को किस बात की शिक्षा देते थे, इस बात का वर्णन मैं अंत में करूँगा। यहाँ केवल यह प्रकट करना चाहता हूँ कि संसार में जो लोग मुख्य योग्यता के होते हैं, उनमें कुछ आकर्षिणी शक्ति अवश्य होती है। कबीर साहव में भी यह शक्ति थी। उनके भावमय भजनों को सुनकर और उनके शील और सदाचरण से प्रभावित होकर उनके समय में ही अनेक लोग उनके अनुगत हो गए। इनमें अधिकतर हिंदुओं की ही संख्या है, सुसल्मानों के हृदय पर उनका अधिकार नहीं हुआ। किसी किसी राजा पर भी उनका प्रभाव पड़ा, चाहे यह प्रभाव केवल एक साधु या महात्मा-मूलक हो, या धम्म-मूलक । विरोधी दले यह सत्य है कि हिंदू और मुसल्मान दोनों धर्म के नेताओं से अंत में उनका विरोध हो गया। क्यों हो गया, इसके कारण स्पष्ट हैं। हिंदू धर्म के नेताओं को एक हिंदू का हिंदू . धम्मोपदेशक रूप से कार्यक्षेत्र में आना कभी प्रिय नहीं
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