पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२६६

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( २४९ ) निर्मल राष् िपाता जाकी मार नाम आया। फरत फीर पाही जन मार्ग में राजे पितारा ॥१२॥ मेख सारा फेफाई भूला मती भरा का सिर नाहीं। काम श्रीफांध मदलाम नाही सनीलमी मानताल नाrin फपट के भेष ते फाज सील नाहींकपटक भनगाम रानी। फहत फार इफ साँच फरनी पिना कालीबाट सिर गायगामी ॥२०॥ संसार-असारता विनसे नाग गमत गलि जाई। विनले फपटीशी सतभाई।। रिनस पाए पुन जिन फीता। शिनले गुन निरगुन जिन चीन्हा। विनसे अनि पवन न पानी । पिनसे मृष्टि जहाँ लगानी ॥ 1 विश्नुलाक विनसै छिन माहीं। तो देखा परनय की छाँही ।। मच्छ र माया भई यमरा गेल पर । हरिहर ब्रा न ऊबरे सुर नर मुनि फेहि फेर ।।२०।। गए राम सौ गे लछमना । संग नगै सीता अस धना ॥ जात कौरवन लाग न चारा । गए भोज जिन साजल धारा ॥ गे पाँडव कुंती सी रानी। गे सहदेव नुमति जिन ठानी। सरव सोन के लंक उठाई। चलत यार कटु संग न लाई। कुरिया जानु अंतरिछ छाई । चलत चार कल्लु संग न लाई॥ मूरख मानुस अधिक सँजोये । अपना मुवल और लगि रोवै ॥ ईन जान अपनी मरि जैये । टका दस विड़े और ले येथे ॥ अपनी अपनी करि गए लगीन फेटुं के साथ । 'अपनी करि गयो रावना अपनी दशरथ नाथ ॥ २०२॥ मानुख जन्म चुके जम माँझी । एहि तन केर बहुत है साँझी ॥