( २४ ) है, क्योंकि यह वाक्य यह नहीं बतलाता कि मरने के केवल कुछ दिन पहले कबीर साहब मगहर में पाए । कवीर साहव मुसल्मान के घर पले थे, मुसल्मान फकीरों से व्यवहार रखते थे। इसलिये उनमें मुसल्मानों की ममता होना स्वाभाविक है। वे एक हिंदू आचार्य के शिष्य थे, राम नाम के प्रचारक और उपदेशक थे, अतएव हिंदू यदि उन्हें अपना समझे तो आश्चर्य क्या? निदान यही करण है कि उनका परलोक हो जाने पर रुधिरपात की संभावना हो गई। काशिराज बीरसिंह उनके शव को दग्ध और विजलीखाँ पठान समाधिस्थ करना चाहता था, अतएव तलवार चल हा गई थी कि एक समझ काम कर गई। शव की चद्दर उठाई गई तो उसके नीचे फूलों का ढेर छोड़ और कुछ न मिला। हिदुओं ने इसमें से आधा लेकर जलाया और उसकी राख पर समाधि बनाई। यही काशी का कबीरपंथियों का प्रसिद्ध स्थान कबीर चौरा है। मुसल्मानों ने दूसरा आधा लेकर वहीं मगहर में उसी पर कत्र बनाई जो अब तक मौजूद है। कवीर- पंथियों के ये दोनों पवित्र स्थान हैं। कवीर कसौटी (पृष्ट ५४) में लिखित मरने के समय के इस वाक्य ले कि "कमल के फूल ओर दो चद्दर मँगवाकर लेट गए" फूल का रहस्य समझ में आता है। कवीर सहव ने जव शव के लिये तलवार चल जाने की संभावना देखी, तो उन्होंने ही अपने बुद्धिमान् शिष्यों द्वारा दूरदर्शिता से ऐसी सुव्यवस्था । की कि शरीरांत होने पर शव किसी को न मिला। उसके स्थान पर लोगों ने फूलों का ढेर पाया, जिससे सब झगड़ा अपने आप मिट गया। कहा जाता है कि गुरु नानक के शव के विषय में भी ठीक ऐसी ही घटना हुई थीं।
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