पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/५३

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इस ग्रंथ के साम्यवाद, उद्बोधन, उपदेश और चेतावनी, मिथ्याचार और संसार की असारता शीर्पक पद्यों में आप इन सिद्धांतों का उत्तम रीति से प्रतिपादन देखेंगे। ____अवतारवाद के विषय में उनकी अनुमति श्राप इस ग्रंथ में शब्द ४-५ में देखेंगे। और भी स्थानों पर उनको अवतार- वाद का विरोध करते देखा जाता है; तथापि ऐसे शब्द भी मिलते हैं, जिनमें अवतारवाद का प्रतिपादन है। निम्नलिखित शब्दों को देखिए- प्रहलाद पठाये पढ़न शाल । संग सखा वह लिये वाल । मोको कहा पढ़ावसि पाल जाल । मोरी पटिया लिख देहु । श्री गोपाल । नहिं छोड़ों रे वावा राम नाम । मोहि और पढ़न सों नहीं काम । काढ़ि खरग काप्यो रिसाय । तुझ राखनहारा मोहिं बताय । प्रभु थंभ ते निकसे कर विसथार। हरनाकस छेद्यो नख विदार । अोइ परम पुरुप देवादि देव । भगत हेत नरसिंघ भेव । कह कवीर को लखै न पार। प्रहलाद उधारे अनिक वार। आदि ग्रंथ, पृष्ठ ६५३ ।। राजन कौन तुम्हारे पापै । ऐसो भाव विदुर को देख्यो वह गरीव मोहिं भावै । हस्ती देख भरम ते भूला श्रीभगवान न जाना । तुमरो दूध विदुर को पानी अमृत कर मैं माना। खीर समान साग में पाया गुन गावत रैनि विहानी । कवीर को ठाकुर अनँद विनोदी जाति न काहु की मानी।-आदिग्रंथ, पृष्ठ ५९६ दर माँदे ठाढ़े दरवार । तुझ विन सुरति करै को मेरी दर- सन दीजै खोल किवार । तुम धन धनी उदार तियागी नवनन सुनियत सुजस तुम्हार । माँगो काहि रंक सब देखों तुम ही ते मेरो निस्तार । जय देव नामा विप्र सुदामा तिन को किरपा भइ है अपार । कह कवीर तुम समरथ दाते चार पदारथ देत न चार। आदि ग्रंथ, पृष्ठ ४६२