पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/७

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मुखबंध
परिचय

कबीर साहब एक पंथ के प्रवर्त्तक थे। उनकी बहुत सी साखियाँ और भजन इस प्रांत के लोगों को स्मरण हैं। साखियाँ प्रायः कहावतों का काम देती हैं; भजन मंदिरों, समाजों और सत्संगों के अवसरों पर गाए जाकर लोगों को परमार्थ का पाठ पढ़ाते हैं; इसलिये उनसे कौन परिचित नहीं है? सभी उनको जानते हैं। किंतु जानना भी कई प्रकार का होता है। वे संत थे, उन्होंने अच्छे अच्छे भजन कहे, कबीर पंथ को चलाया, एक जानना यह है; और एक जानना यह है कि उनकी विचार-परंपरा क्या थी, वह कैसे उत्पन्न हुई, किन सांसारिक घटनाओं और कार्य्य-कलापों में पड़कर वह पल्लवित हुई, किन संसर्गों और महान् वचनों के प्रभावों से विकसित बनी। इन बातों का ज्ञान जितना हृदयग्राही और मनोरम होगा, उतना ही वह अनेक कुसंस्कारों और निर्मूल विचारों के निराकरण का हेतु भी होगा। अतएव पहली अभिज्ञता से इस दूसरी अभिज्ञता का महत्त्व कितना अधिक होगा, यह बतलाने की आवश्यकता नहीं। इस ग्रंथ में संगृहीत पदों और साखियों में आप जिन विचारों को पढ़ेंगे, जिन सिद्धांतों का निरूपण देखेंगे, उनके तत्त्वों को उस समय और भी उत्तमता से समझ सकेंगे, जब आप यह जानते होंगे कि उनका रचयिता कैसा हृदय रखता था, और किन सामयिक घटनाओं के घात-प्रतिघात में पड़कर उसका जीवनस्रोत