पृष्ठ:कर्बला.djvu/११

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दुर्गों में बैठकर चारों ओर से सेना एकत्र करता। देश में उनका जितना मान था, और लोगों को उन पर जितनी भक्ति थी, उसके देखते २०-२५ हजार सेना एकत्र कर लेना उनके लिए कठिन न था । किन्तु वह अपने को पहले ही से हारा हुआ समझने लगे । यह सोच कर वह कहीं भागते न थे। उन्हें भय था कि शत्र मुझे अवश्य खोज लेगा। वह सेना जमा करने का भी प्रयत्न न करते थे। यहाँ तक कि जो लोग उनके साथ थे, उन्हें भी अपने पास से चले जाने की सलाह देते थे। इतना ही नहीं, उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि मैं खलीफ़ा बनना चाहता हूँ। वह सदैव यही कहते रहे कि मुझे लौट जाने दो, मैं किसी से लड़ाई नहीं करना चाहता। उनकी आत्मा इतनी उच्च थी कि वह सांसा- रिक राज्य-भोग के लिए संग्राम-क्षेत्र में उतरकर उसे कलुषित नहीं करना चाहते थे। उनके जीवन का उद्देश्य आत्मशुद्धि और धार्मिक जीवन था। वह कूफा में जाने को इसलिए सहमत नहीं हुए थे कि वहाँ अपनी खिलाफत स्थापित करें, बल्कि इसलिए कि वह अपने सहधमियों की विपत्ति को देख न सकते थे। वह कूफा जाते समय अपने सब सम्बन्धियों से स्पष्ट शब्दों में कह गये थे कि मैं शहीद होने जा रहा हूँ । यहाँ तक कि वह एक स्वप्न का भी उल्लेख करते थे, जिसमें उनके नाना ने उनको स्वर्ग आने का निमंत्रण दिया था, और वह उनके थाने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उनकी टेक केवल यह थी कि मैं यजीद के नाम पर बैयत न करूँगा। इसका कारण यही था कि यजीद मद्यप, व्यभिचारी और इसलाम-धर्म के नियमों का पालन न करनेवाला था । यदि यजीद ने उनकी हत्या कराने की चेष्टा न की होती, तो वह शान्ति-पूर्वक मदीने में जीवन-भर पड़े रहते । पर समस्या यह थी कि उनके जीवित रहते हुए यजीद को अपना स्थान सुरक्षित नहीं मालूम हो सकता था। उसके निष्कंटक राज्य-भोग के लिए हुसैन का उसके मार्ग से सदा के लिए हट जाना परम आवश्यक था। और इस हेतु कि खिलाफत एक धर्म-प्रधान संस्था थी, अतः यजीद को हुसैन के रणक्षेत्र में आने का उतना भय न था, जितना उनके शान्ति-सेवन