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पृष्ठ:कर्बला.djvu/११६

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कर्बला

क़ीस---पकड़ लो, पकड़ लो, निकलने न पाये। खबरदार, क़त्ल न करना; ज़िन्दा पकड़ लो।

अशअस---तलवार का हक़दार मैं हूँ।

क़ीस---जिर्रह मेरा हिस्सा है।

अश॰---ख़ोद उतार लो, साद को देंगे।

मु॰---प्यास! बड़े ज़ोरों की प्यास है। ख़ुदा के लिए एक घूँट पानी पिला दो।

क़ीस---अब जहन्नुम के सिवा यहाँ पानी का एक क़तरा भी न मिलेगा।

मुस॰---तुफ़ है तुझ पर ज़ालिम, तुझे शरीफ़ों की तरह ज़बह करने की भी तमीज़ नहीं। मरनेवालों से ऐसी दिल-ख़राश बातें की जाती हैं? अफ़सोस।

अश॰---अब अफ़सोस करने से क्या फ़ायदा। यह तुम्हारे फे़ल का नतीजा है।

मु॰---अाह! मैं अपने लिए अफ़सोस नहीं करता। रोता हूँ हुसैन के लिए, जिसे मैंने तुम्हारी मदद के लिए आमादा किया। जो मेरी ही मिन्नतों से अपने गोशे पर निकलने को राज़ी हुआ। जब कि खानदान के सभी आदमी तुम्हारी दग़ाबाज़ी का खौफ़ दिला रहे थे, मैंने ही उन्हें यहाँ आने पर मजबूर किया। रोता हूँ कि जिस दग़ा ने मुझे तबाह किया, वह उन्हें और उनके साथ उनके खानदान को भी तबाह कर देगी। क्या तुम्हारे ख़याल में यह रोने की बात नहीं है? तुमसे कुछ सवाल करूँ?

अश॰---हुसैन की बैयत के सिवा और जो सवाल चाहे कर सकते हो।

मु॰---हुसैन को मेरी मौत की इत्तिला दे देना।

अश॰---मंज़ूर है।

[ कई सिपाही मुस्लिम को रस्सियों से बाँधकर ले जाते हैं। ]


तेरहवाँ दृश्य

[ प्रातःकाल का समय। ज़ियाद का दरबार। मुस्लिम को कई आदमी मुश्क कसे लाते हैं। ]