शिमर---ज़ियाद को ये बातें मालूम होंगी, तो आपसे सख्त नाराज़ होगा।
साद---मुझे बार-बार यही खयाल पाता है कि हुसैन यहाँ जंग के इरादे से नहीं, महज़ हम लोगों के बुलाने से आये हैं। उन्हें बुलाकर उनसे दग़ा करना इन्सानियत के खिलाफ़ मालूम होता है।
शिमर---मुझे खौफ है कि आपके ताख़ीर से नाराज़ होकर ज़ियाद आपको वापस न बुला ले। फिर उसके ग़ुस्से से ख़ुदा ही बचाये। ज़ियाद ने कितनी सख्त ताकीद की थी कि हुसैन के लश्कर को पानी का एक बूँद भी न मिले। वहाँ उनके आदमी दरिया से पानी ले जाते हैं, कुएँ खोदते हैं। इधर से कोई रोक-टोक नहीं होती। क्या आप समझते है कि ज़ियाद से ये बातें छिपी होंगी?
साद---मालूम नहीं, कौन उसके पास ये सब खबरें भेजता रहता है?
शिमर---उसने यहाँ अपने कितने ही गोइंदे बिठा रखे है जो दम-दम की खबरें भेज देते हैं।
[ एक क़ासिद का प्रवेश। ]
क़ासिद---अस्सलामअलेक बिन साद। अमीर का हुक्मनामा लाया हूँ।
[ साद को ज़ियाद का ख़त देता है। ]
साद---( खत पढ़कर ) तुम बाहर बैठो, इसका जवाब दिया जायगा। ( क़ासिद चला जाता है ) इसमें भी वही ताक़ीद है कि हुसैन को पानी मत लेने दो, जंग करने में एक लहमे की देर न करो। देखिए, लिखते हैं---
"हुसैन से जंग करने के लिए अब कोई बहाना नहीं रहा। फ़ौज की कमी की शिकायत थी, सो वह भी नहीं रही। अब मेरे पास २२ हजार सवार और पैदल मौजूद हैं।"
शिमर---बेशक उनका लिखना वाजिब है। मैं जाकर सख़्त हुक्म देता हूँ कि हुसैन के लश्कर की एक चिड़िया भी दरिया के किनारे न आने पाये। आप जंग का हुक्म दे दें।
साद---आपको मालूम है, २२ हज़ार आदमियों में कितने अज़ाब के खौफ़ से भाग गये, और रोज़ भागते जाते हैं