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पृष्ठ:कर्बला.djvu/१५०

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कर्बला

असग़र---पानी, बुआ, पानी।

शहरबानू---या ख़ुदा! किस अज़ाब में फँसे। इन नन्हों को कैसे समझाऊँ!

हफ़ां-बीबी, क़ुरबान जाऊँ! मैं जाकर दरिया से पानी लाती हूँ। कौन मुआ रोकेगा, मुँह झुलस दूँ उसका। क्या मेरे लाल प्यासों तड़पेंगे, जब दरिया में पानी भरा हुआ है?

जैनब---तू नहीं जानती, साढ़े छह हज़ार जवान दरिया का पानी रोकने के लिए तैनात हैं?

हफ़ां---ऐ क़ुरबान जाऊँ बीबी, कौन मुझसे बोलेगा, झाडूँ न मारूँगी। रसूल के बेटे प्यासे रहेंगे?

[ हफ़ां एक मशक लेकर दरिया की तरफ़ जाती है, और थोड़ी देर बाद लौट आती है, सिर के बाल चुने हुए, कपड़े फटे हुए, मशक नदारद। रोती हुई ज़मीन पर बैठ जाती है। ]

जैनब---क्या हुआ हंफ़ा? यह तेरी क्या हालत है?

हंफ़ा---बीबी, खुदा का अज़ाब इन रूस्याहों पर नाज़िल हो। ज़ालिम ने मुझे रोक लिया, मेरी मशक छीन ली, और एक कुत्ते को मुझ पर छोड़ दिया। भागते-भागते किसी तरह यहाँ तक पहुँची। हाय! इन मूज़ियों पर आसमान भी नहीं फट पड़ता। इतनी दुर्गति कभी न हुई थी।

[ रोती है। ]

हुसैन--–( अन्दर जाकर ) हंफ़ा, क्यों रोती है? अरे, यह तेरे कपड़े किसने फाड़े?

जैनब---बेचारी शामत की मारी पानी लाने गयी थी। बच्चे प्यास से तड़प रहे थे। ज़ालिमों ने नीमजान कर दिया।

हुसैन---हंफ़ा मत रोओ। रसूल के क़दमों की कसम, अभी उन ज़ालिमों का सिर तेरे पैरों पर होगा, जिनके बेरहम हाथों ने तेरी बेहुरमती की, चाहे मेरे सारे रफ़ीक़, मेरे सारे अज़ीज़ और मैं खुद क्यों न मर जाऊँ। औरत की बेहुरमती का बदला खून है, चाहे वह ग़ुलाम और बेकस ही क्यों