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पृष्ठ:कर्बला.djvu/२००

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कर्बला

शिमर—इनकी मौत मेरे हाथों लिखी हुई है । तुम सब दिल दे कच्चे हो।

[तलवार लेकर हुसैन के सीने पर चढ़ बैठता है।]

हुसैन—(-आँखें खोलते हैं, और उसकी तरफ़ ताकते हैं।)

शिमर—मैं उन बुज़दिलों में नहीं हूँ, जो तुम्हारी निगाहों से दहल

उठे थे।

हुसैन—तू कौन है ?

शिमर—मेरा नाम शिमर है ।

हुसैन—मुझे पहचानता है ?

शिमर—खूब पहचानता हूँ, तुम अली और फातिमा के बेटे औ। मुहम्मद के नेवासे हो।

हुसैन—यह जानकर भी तू मुझे कत्ल करता है ?

शिमर—मुझे जन्नत से जागीरें ज्यादा प्यारी हैं।

[तलवार मारता है, हुसैन का सिर जुदा हो जाता है।]

साद—(रोता हुआ ) शिमर, जियाद से कह देना, मुझे 'रे' की जागीर से माफ करें। शायद अब भी नजात हो जाय ।

[अग्ने सीने में नेज़ा चुमा लेता है, और बेजान होकर गिर पड़ता है फौज के कितने ही सिपाही हाथों से मुँह छिपाकर रोने लगते हैं । बमों से रोने की आवाजें आने लगती हैं।]