(३) "अगर ये दोनो बातें तुम्हें अम्वीकार हैं, तो मुझे और मेरे साथियों को पानी दो; क्योंकि प्राणी-मात्र को पानी लेने का हक़ है।"
(इसका भी वैसा ही कठोर और निराशाजनक उत्तर मिला।) इस प्रश्नोत्तर के बाद हुसैन की ओर से बुरीर मैदान में आये । उधर से मुअक्कल निकला। बुरीर ने अपने प्रतिपक्षी को मार लिया, और फिर खुद सेना के हाथों मारे गये। बुरीर के बाद अब्दुल्लाह निकले, और दस-बीस शत्रुओं को मारकर काम आये।
अब्दुल्लाह के बाद उनका पुत्र, जिसका नाम वहब था, मैदान में आया । उपकी वीर-गाथा अत्यन्त मर्मस्पर्शी है, और राजपूताने के अमर वीर-वृत्तान्त की याद दिलाता है। वहब का विवाह हुए अभी केवल सत्रह दिन हुए थे। हाथ की मेहँदी तक न छूटी थी। जब उसके पिता शहीद हो गये, तो उसकी माता उससे बोली-
“मी ख्वाहम कि मरा अज़ खूने खुद शरबते दिही ताशीरे कि अजपिस्ताने मन खरदई बर तो हलाल गरदद ।" ।
कितने सुन्दर शब्द हैं, जो शायद ही किसी वीर-माता के मुँह से निकले होंगे । भावार्थ यह है-
"मेरी इच्छा है कि तू अपने रक्त का एक घुट मुझे दे, जिसमें कि यह दूध, जो तूने मेरे स्तन से पिया है, तुझ पर हलाल हो जाय।"
वहब के शहीद हो जाने के बाद क्रम से कई योद्धा निकले, और मारे गये । इस्लामी पुस्तकों में तो उनकी वीरता का बड़ा प्रशंसा- त्मक वर्णन किया गया है। उनमें से प्रत्येक ने कई-कई सौ शत्रुओं को परास्त किया । ये भक्तों के मानने की बातें हैं। जो लोग प्यास से तड़प रहे थे, भूख से आँखों-तले अँधेरा छा जाता था, उनमें इतनी असाधारण शक्ति और वीरता कहाँ से आ गयी ? उमर-बिन-साद की सेना में 'शिमर' बड़ा कर और और दुष्ट आदमी था। इस समर में हुसैन और उनके साथियों के साथ जिस अपमान-मिश्रित निदयता का व्यवहार किया गया, उसका दायित्व इसी शिमर के सिर है। यह