गया। हुसैन ने निराशा और शोक से अली अकबर को देखा, फिर आँखें नीची कर ली, और रो दिये। जब वह शहीद हो गया, तो शोक-विह्वल पिता ने जाकर लाश के मुँह पर अपना मुँह रख दिया, और कहा-“बेटा, तुम्हारे बाद अब जीवन को धिक्कार है।" पुत्र-प्रेम की इहलोक की ममता के श्रादर्श पर, धर्म पर, गौरव पर कितनी बड़ी विजय है!
अब हुसैन अकेले रह गये । केवल एक सात वर्ष का भतीजा और हसन का एक दुधमुँहा पोता बाक़ी था। हुसैन घोड़े पर सवार महिलाओं के खीमों की ओर आये, और बोले-“बच्चे को लाओ, क्योंकि अब उसे कोई प्यार करनेवाला न रहेगा।" स्त्रियों ने शिशु को उनकी गोद में रख दिया।वह अभी उसे प्यार कर रहे थे कि अकस्मात्ए क तीर उसकी छाती में लगा, और वह हुसैन की गोद में ही चल बसा ! उन्होंने तुरन्त तलवार से गढ़ा खोदा, और बच्चे की लाश वहीं गाड़ दी। फिर अपने भतीजे को शत्रओं के सामने खड़ा करके बोले-"ऐ अत्याचारियो, तुम्हारी निगाह में मैं पापी हूँ, पर इस बालक ने तो कोई अपराध नहीं किया, इसे क्यों प्यासों मारते हो ?" यह सुन कर किसी नर-पिशाच ने एक तीर चलाया, जो बालक के गले को छेदता हुआ हुसैन की बाँह में गड़ गया। तीर के निकलते ही बालक की क्रीड़ाओं का अन्त हो गया।
हुसैन अब रणक्षेत्र की ओर चले । अब तक रण में जानेवालों को वह अपने खीमे के द्वार तक पहुँचाने आया करते थे। उन्हें पहुँचाने-.वाला अब कोई मर्द न था। तब आपकी बहन जैनब ने आपको रोकर बिदा किया। हुसैन अपनी पुत्री सकीना को बहुत प्यार करते थे। जब वह रोने लगी, तो आपने उसे छाती से लगाया, और तत्काल शोक के आवेग में कई शेर पढ़े, जिनका एक-एक शब्द करुण रस में डूबा हुआ है। उनके रणक्षेत्र में आते ही शत्रुओं में खलबली पड़ गयी, जैसे गीदड़ों में कोई शेर आ गया । हुसैन तलवार चलाने लगे,और इतनी वीरता से लड़े कि दुश्मनों के छक्के छूट गये। जिधर उनका