क़ीस---अल्लाहताला आप पर साया रखे। हम सब आपकी राह देख रहे थे।
मु॰---भाई साहब ने मुझे यह खत देकर आपकी तसकीन के लिए भेजा है।
[ हानी ख़त लेकर आँखों से लगाता है, और आँखों में ऐनक लगाकर पढ़ता है। ]
शिमर---अब ज़ियाद की ख़बर लूँगा।
क़ीस---मैं तो यज़ीद की आँखों में मिर्च डालकर उसका तड़पना देखूँगा।
मु॰---आप लोग भी कल अपने क़बीलेवालों को जामा मस्जिद में बुलायें। कल तीन-चार हज़ार आदमी आ जायँगे?
शैस---खुदा झूठ न बुलवाये, तो इसके दसगुने हो जायँगे?
हानी---नबी की औलाद की शान ही और है। वह हुस्न, वह इखलाक, वह शराफ़त कहीं नज़र ही नहीं आती।
क़ीस---यज़ीद को देखो, खासा हब्शी मालूम होता है।
हज्जाज---ज़ियाद तो खासा सारवान है।
मु॰---तो कल शाम को जामा मस्जिद में आने की ठहरी।
शिमर---तो हम लोग चलकर अपने क़बीलों को तैयार करें, ताकि जो लोग इस वक्त यहाँ न हों, वे भी आ जायँ।
[ सब लोग चले जाते है। ]
मु॰---( दिल में ) ये सब कूफ़ा के नामी सरदार हैं। हमारी फ़तह ज़रूर होगी; और एक बार तक़दीर को जक उठानी पडेगी। बीस हज़ार आदमियों की बैयत मिल गयी, तो फिर हुसैन को ख़िलाफ़त की मसनद पर बैठने से कौन रोक सकता है, जरूर बैठेंगे।
[ क़ूफा के चौक में कई दूकानदार बातें कर रहे हैं। ]
पहला---सुना, आज हज़रत हुसैन तशरीफ़ लानेवाले हैं।