पृष्ठ:कर्बला.djvu/९

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थे। इधर कूफा में हुसैन के प्रेमियों की संख्या बढ़ने लगी । लोग उनके नाम पर बैयत करने लगे। थोड़े ही दिनों में इन लोगों की संख्या २०:हजार तक पहुँच गयी। इस बीच में इन्होंने हुसैन की सेवा में दो सँदेसे और भेजे, किन्तु हुसैन ने उनका भी कुछ उत्तर नहीं दिया। अन्त को कूकावालों ने एक अत्यन्त आग्रह-पूर्ण पत्र लिखा, जिसमें हुसैन को हजरत मुहम्मद और दीन-इस्लाम के निहोरे अपनी सहायता करने को बुलाया । उन्होंने बहुत अनुनय के बाद लिखा था-"अगर आप पन आये, तो कल क़यामत के दिन अल्लाहताला के हुजूर में हम आप पर दावा करेंगे कि या इलाही, हुसैन ने हमारे ऊपर अत्याचार किया था, क्योंकि हमारे ऊपर अत्याचार होते देखकर यह खामोश बैठे रहे । और, सब लोग फर्याद करेंगे कि ऐ खदा. हुसैन से हमाग बदला दिला दे । उस समय आप क्या जवाब देंगे, और खुदा को क्या मुँह दिखायेंगे ?"

धर्म-प्राण हुसैन ने जब यह पत्र पढ़ा, तो उनके रोएँ खड़े हो आये, और उनका हृदय जल के समान तरल हो गया। उनके गालों पर धर्मानुगग के आँसू बहने लगे। उन्होंने तत्काल उन लोगों के नाम एक आश्वासन-पत्र लिखा-"मैं शीघ्र ही तुम्हारी सहायता को आऊंगा।" और अपने चचेरे भाई मुस्लिम के हाथ उन्होंने यह पत्र कूमावालों के पास भेज दिया।

मुस्लिम मार्ग की कठिनाइयाँ झेलते हुए कूका पहुँचे। उस समय कूमा का सूबेदार एक शान्त पुरुष था। उसने लोगों को समझाया- "नगर में कोई उपद्रव न होने पाये। मैं उस समय तक किसी से न बोलूँगा, जब तक कोई मुझे क्लेश न पहुँचायेगा।"

जिस समय यजीद को मुस्लिम के कमा पहँचने का समाचार मिला , तो उसने एक दूसरे सूबेदार को कूफा में नियुक्त किया,जिसका नाम 'ओबैद बिन-ज़ियाद' था। यह बड़ा निठुर और कुटिल प्रकृति का मनुष्य था। इसने आते-ही-आते कूफा में एक सभा की, जिसमें घोषणा की गयी कि "जो लोग यजीद के नाम पर बैयत लेंगे, उन पर खलीफा