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को राह न मिलेगी। हमें बोर्ड के मेम्बरों को यही चेतावनी देनी है। इस वक्त बहुत ही अच्छा अवसर है। सभी भाई म्युनिसिपैलिटी के दफ़्तर चलें। अब देर न करें, नहीं मेम्बर अपने-अपने घर चले जायँगे। हड़ताल में उपद्रव का भय है; इसलिए हड़ताल उसी हालत में करनी चाहिए, जब और किसी तरह काम न निकल सके।'

नैना ने झण्डा उठा लिया और म्युनिसिपैलिटी के दफ़्तर की ओर चली। उसके पीछे बीस-पचीस हज़ार आदमियों का एक सागर उमड़ता हुआ चला। और यह दल मेलों की भीड़ की तरह अशृंखल नहीं, फ़ौज की कतारों की तरह शृंखलाबद्ध था। आठ-आठ आदमियों की असंख्य पंक्तियाँ गंभीर भाव से, एक विचार, एक उद्देश्य, एक धारणा की आन्तरिक शक्ति का अनुभव करती हुई चली जा रही थीं, और उनका ताँता न टूटता था, मानो भूगर्भ से निकलती चली आती हों। सड़क के दोनों ओर छज्जों और छतों पर दर्शकों की भीड़ लगी हुई थी। सभी चकित थे। उफ्फ़ोह! कितने आदमी हैं! अभी चले ही आ रहे हैं!

तब नैना ने यह गीत शरू कर दिया, जो इस समय बच्चे-बच्चे की जबान पर था---

'हम भी मानव-तनधारी हैं...'

कई हजार गलों से संयुक्त, सजीव और व्यापक स्वर गगन में गूंज उठा---

'हम भी मानव-तनधारी हैं!'

नैना ने उस पद की पूर्ति की---'क्यों हमको नीच समझते हो?'

कई हजार गलों ने साथ दिया---

'क्यों हमको नीच समझते हो?'

नैना---क्यों अपने सच्चे दासों पर?

जनता---क्यों अपने सच्चे दासों पर?

नैना---इतना अन्याय बरतते हो!

जनता---इतना अन्याय बरतते हो!

इधर म्युनिसिपल बोर्ड में यही प्रश्न छिड़ा हुआ था।

हाफ़िज़ हलीम ने टेलीफोन का चोंगा मेज़ पर रखते हए कहा--डाक्टर शान्तिकुमार भी गिरफ्तार हो गये।

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कर्मभूमि