का प्रभाव समस्त उत्तर-आभासिक धारा पर अपने गुण तथा गणना के अनुपात से भी अधिक पड़ा।"
इस समय फ्रांस के एक गाँव में पाल गोगा नामक चित्रकार एशियाई चित्रों से इतना प्रभावित हुआ कि अपना सारा कामकाज छोड़कर उसने इन्हीं चित्रों के आधार पर चित्र रचना का कार्य प्रारम्भ किया। १८८८ ईसवी में उसकी मुलाकात एक दूसरे चित्रकार से हुई जिसका नाम पाल सेरूसिया था। पाल सेरूसिया उस समय चित्रकला के क्षेत्र में काफी ख्याति प्राप्त कर चुका था। उसने पाल गोगों के नये चित्र देखे और उनकी रोचकता तथा ताजगी देखकर वह बहुत प्रभावित हुआ। दोनों ने मिलकर यूरोप में चित्रकला की एक नयी धारा ही निकाल दी, जो आज की आधुनिक यूरोपीय कला का आधार बन गयी है । फ्रांस के विश्वविख्यात कलाकार वान गाग ने भी इस धारा से प्रभावित होकर रचना की। उस समय यूरोपीय साहित्य में प्रतीकात्मक धारा चल रही थी, इसीलिए गोगाँ तथा सेरूसिया की चलायी हुई चित्रकला की नवीन धारा का नाम प्रतीकात्मक चित्रकला नहीं पड़ सका, यद्यपि आज भी जो यूरोपीय आधुनिक चित्रकला है वह अति प्रतीकात्मक है । पाँच शताब्दियों से यूरोपीय चित्रकला जिस रास्ते से जा रही थी, उसने एकाएक अपना रास्ता बदल दिया । बाह्य सांसारिक स्वरूपों का चित्रण करना बिलकुल आवश्यक नहीं समझा जाने लगा। कलाकार इन बाह्य स्वरूपों के अन्दर छिपी किसी अन्य वस्तु के भावों का चित्रण करने के लिए उद्यत हुआ, जिनको बिना प्रतीकों की सहायता से बनाया ही नहीं जा सकता।
जिस समय इस नयी धारा का जन्म फ्रांस के एक गाँव में हुआ, किसी ने आशा न की थी कि एक दिन वह आधुनिक यूरोपीय कला के प्रसार का आधार बनेगी और एक शक्तिशाली चित्रकला-शैली में परिणत हो जायगी। आज की आधुनिक जटिल होती हुई कला की कुंजी बनेगी । पाँच सदियों की यूरोपीय चित्रकला केवल वर्णनात्मक स्वरूपों को लेकर आगे न बढ़ सकी और उसे प्रतीकात्मक बनना पड़ा।
इस प्रकार पूर्वी देशों की प्रतीकात्मक आलंकारिक चित्रकला ने आधुनिक यूरोपीय कला को नयी प्रेरणा दी जिसके फलस्वरूप वहाँ अब वस्तुओं के बाह्य सांसारिक स्वरूपों का चित्रण करना बि · कुल निकृष्ट समझा जाता है । कुछ समय पहले जब इस नयी धारा का प्रचार नहीं हुआ था तो यूरोप में भारतीय तथा पूर्वी चित्रों को देखकर लोग उन्हें अपभ्रंश शैली या अपरिपक्व कला कहकर छोड़ देते थे। वे देखते थे कि उनकी बाह्य सांसारिक स्वरूपों की चित्रकला-पद्धति की समानता में पूर्वी कला में कुछ भी दम न