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पृष्ठ:कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ.djvu/१८७

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अन्तर-राष्ट्रीय प्रवृत्ति


यूरोप में प्राकृतिक अनुकरण के बाद वैज्ञानिक युग आरम्भ होता है और आभासिक आन्दोलन तथा उत्तर-आभासिक आन्दोलन पिकासो तक आकर विकसित होकर कुम्हलाने लगा है और नये वैज्ञानिक युग के साथ-साथ एक नयी चेतना के साथ वहाँ आत्म-अभिव्यंजनात्मक आन्दोलन आरम्भ हो चुका है। यूरोप में इस समय अधिकतर चित्रकार इस आन्दोलन से प्रभावित हैं, इसी आधार पर नयी कला का निर्माण हो रहा है। इस आन्दोलन के प्रधान नेता पिकासो, सलवाडर डाली, हैनरी मूर, तथा हिलेयर हिलर हैं। यह आन्दोलन यूरोप, अमेरिका के सभी देशों और प्रदेशों में काफी वेग से फैल चुका है। यह आन्दोलन फ्रांस से आरम्भ होता है। यहाँ इस आन्दोलन के परिचालक वान गाग, गौगियाँ, मातिस, और रूसो मुख्य हैं। अमेरिका में मरीन, हैनरी एवं बैलो, बैबर तथा अलब्राइट मुख्य आत्म-अभिव्यंजनात्मक चित्रकार हैं। स्पेन में सलवाडर डाली तथा इंगलैण्ड में हेनरी मूर विख्यात हैं।

भारत में भी इस आन्दोलन में भाग लेनेवाले बहुत से चित्रकार उल्लेखनीय हैं जैसे—रवीन्द्रनाथ ठाकुर, गगेन्द्रनाथ ठाकुर, यामिनी राय, अमृत शेर गिल, जार्ज कीट, कल्याण सेन, बैन्द्रे, शैलेज मुकर्जी,सुभौ ठाकुर, मनिषी डे, सुधीर खास्तगीर, शिवाक्स चावदा, बीजू भाई भगत, प्राणनाथ मागो, रबी देव तथा राचशु इत्यादि।

आत्म-अभिव्यंजनात्मक कला का यह आन्दोलन भारत में यूरोप से आया हुआ प्रतीत होता है और इसकी भारतीय कला-आलोचक कटु आलोचना करते हैं। पर ऐसे आलोचक अधिकतर वे हैं जिन्होंने इस प्रकार के आन्दोलन का महत्त्व ही अभी नहीं समझा है। यूरोप का यह आन्दोलन एक ऐसा आन्दोलन है जो भविष्य में शायद यूरोप की भौतिकवादिता का लोप कर देगा और उसे (स्पिरिचुअलिज्म) आत्मज्ञान या अध्यात्म के पथ पर अग्रसर करेगा। यही प्रात्मज्ञान या अध्यात्म और भौतिकवाद ही यूरोप और एशिया के एक दूसरे से दूर होने का कारण रहा है। भारतवर्ष आत्मज्ञान तथा अध्यात्म में सदैव से विश्वास करता आया है, और आज भी करता है। यदि सदियो के भूले आज अनजाने जीवन के सही पथ पर आरूढ़ होने के लिए आन्दोलन करते हैं तो वे स्वागत के योग्य हैं। यूरोप में यह प्रात्म-अभिव्यंजनात्मक चित्रकला का जो आन्दोलन फैल रहा है शायद इसका महत्त्व वहाँ के लोगों ने भी अभी नहीं समझा है। पिछले भयानक महायुद्धों के बाद यूरोपवासी, भौतिकता से, जिसमें वे सबके आगे थे, घबड़ा गये हैं और ऐसी अवस्था में आत्म-चिन्तन, आत्म-ज्ञान या अध्यात्म ही मनुष्य को सही रास्ते पर फिर ला सकता है।

आत्म-अभिव्यंजनात्मक चित्रकला का सम्बन्ध हृदय से है। मनुष्य की मनोवृत्ति, उद्वेग और मनोवेग से है। जिस कला का सम्बन्ध हृदय से या आत्मा से होता है, वही कला