अन्तिम बात
कला अपने समय तथा समाज का और उसकी प्रगति का प्रतिबिम्ब होती है। हर प्राचीन कला तथा आधुनिक कला का यही रूप तथा रुख हुआ करता है, चाहे उसका रूप कैसा भी हो। रूप संसार की विधि के अनुसार सभी वस्तुओं का बदलता रहता है। रूप एक प्रकार से केवल अभिव्यक्ति का माध्यम है। माध्यम कभी एक-सा सभी का नहीं होता। इसी माध्यम को हम कला की दृष्टि से शैली कह सकते हैं। शैलियाँ प्राचीन काल में भी अनेक थीं और आज भी हैं। शैली का तात्पर्य होता है उन विलक्षण प्रतीकों से जिनके द्वारा कलाकार अभिव्यक्ति करता है। जैसा मैने पहले कहा, अभिव्यक्ति मनुष्य अपने समाज के तौर-तरीकों, भावनाओं तथा विचारों की करता है और सभी कलाकार यही करते हैं, अन्तर है शैली का। अभिव्यक्ति का रूप तो करीब-करीब एक समय तथा समाज में एक-सा होता है, पर उसे व्यक्त करने के लिए अनेकों कलाकार विभिन्न शैलियों का प्रयोग करते हैं। इसीलिए आधुनिक कला के रसास्वादन के लिए शैली की विशेषता का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है और आधुनिक कला का प्रानन्द भी इसी में है। अभिव्यक्ति तो एक प्रकार से गौण-सी होती है क्योंकि एक ही बात की सभी कलाकार अभिव्यक्ति करते हैं, यद्यपि अभिव्यक्ति भी कला का एक आवश्यक अंग है। इतना ही नहीं, जाने-अनजाने अभिव्यक्ति होती रहती है चाहे कलाकार उसपर ध्यान दे या न दे।
आधुनिक कला में अभिव्यक्ति से महत्त्वपूर्ण शैली है। शैली की विचित्रता, नवीनता तथा सुन्दरता ही आज की कला का मुख्य आकर्षण है और यह बात साफ दृष्टिगोचर होती है। जिस किसी ने आधुनिक चित्रों को देखा है वह उसकी शैली की विचित्रता से अवश्य ही प्रभावित हुआ होगा चाहे उसकी समझ में वे चित्र न पाये हों और इसीलिए उन्हें देखकर उसे कुछ घबराहट भी हुई हो और वह आधुनिक कला का आलोचक बन गया हो। बहुत से व्यक्ति जो साहित्यिक दृष्टिकोण से आधुनिक कला में पदार्पण करते हैं, इस महत्त्व को नहीं समझ पाते और न इस कला का आनन्द ही ले पाते हैं। यदि वे स्वयं भी कलाकार हुए तो आधुनिक कला की छीछालेदर करते हैं, बन्दरों की तरह इसकी नकल कर। साहित्यिक कला में भाव खोजता है जैसा वह कविता में करता है और बस आधुनिक कला का दरवाजा