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आधुनिक समाज में कला और कलाकार

प्रथम बार भारतीय कलाकारों को राज्य की ओर से सम्मान प्राप्त होना प्रारम्भ हुआ है, जिसकी चर्चा हमने समाचार-पत्रों में पढ़ी है । इन सम्मानित लब्धप्रतिष्ठ प्रथम कलाकारों में श्री नन्दलाल बोस, श्री शिवास्क चावड़ा, श्री यामिनी राय, श्री के० के० हेब्बर, श्री रामकिंकर, श्री एन० एस० हुसेन, श्री आइ० एन० चक्रवर्ती, श्री के० मी० एस० पनीकर और श्री के० शंकर पिल्लई है । मेरा ख्याल है, हममें से बहुत कम लोग हैं जो नन्दलाल बोस के अतिरिक्त किसी और कलाकार का नाम जानते हैं या उनकी कला से परिचित हैं । यह बहुत ही दुःख की बात है कि हम राजनीति तथा साहित्य के क्षेत्र में पिद्दी से नेता तथा कवि या साहित्यकार का नाम भी जानते हैं, पर अपने देश के अग्रगण्य कलाकारों से जरा भी परिचित नहीं ।

तात्पर्य यह है कि अभी हमारा देश कला के क्षेत्र में सोया हुआ है । कला-विहीन जीवन मृत्यु के समान है; ऐसी अवस्था का कारण हम और आप हैं । हमने अभी तक इस ओर ध्यान दिया ही नहीं है । हमने अपने जीवन में कला को कोई स्थान नहीं दिया और इसके लिए हमें दूसरों का मुँह ताकना पड़ता है । मैं आज के आधुनिक हिन्दी साहित्यिकों, आलोचकों तथा विद्वानों को चेतावनी देता हूँ कि अगर इस ओर उन्होंने ध्यान नहीं दिया तो वह दिन दूर नहीं जब देश पुनः सुप्तावस्था को प्राप्त होने लगेगा ।

इस सबका कारण यह है कि अभी तक हमने यह भली-भाँति अनुभव ही नहीं किया है कि कलाओं का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है । हमारे साहित्यिक समझते हैं कि यदि किसी कवि या लेखक की आलोचना कर सकें या कोई गप्प या कथा लिख सकें या वर्तमान आर्थिक तथा राजनीतिक टिप्पणी लिख सकें तो उनका हिन्दी के प्रति कर्त्तव्य पूरा हो जाता है, पर साहित्य इतना ही नहीं है । साहित्य में जीवन के सभी पक्ष होने चाहिए । साहित्य और कला में बहुत गहरा सम्बन्ध है ।

साहित्य का कार्य स्वयं कला का कार्य है या कला है, परन्तु साहित्य का मुख्य कार्य है कलाओं को प्रेरणा देना । साहित्य का विषय कला होता है। यदि हम साहित्य की