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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

प्रचार भी अधिक बढ़ता जा रहा है, परन्तु फिर भी हम उसका आनन्द नहीं ले पाते । इस प्रकार के अनेकों आधुनिक चित्रकार कार्य कर रहे हैं, पर न तो हम उनका नाम जानते हैं और न उनकी कला से ही परिचित हैं । शुरू में मैंने उन आठ कलाकारों का नाम लिया है जिनको राज्य की ओर से प्रथम पदक मिले थे । उनमें अधिकांशतः आधुनिक विचार के कलाकार है, पर हम में से शायद कोई भी उनकी कला से परिचित नहीं । ऐसा पदक कलाकार नन्दलाल बोस को भी मिला है, जिनके नाम से तो प्रायः हम सभी परिचित है, चाहे कला से न हों । नन्दलाल बोस वयोवृद्ध चोटी के कलाकार हैं, उनकी सेवाओं पर भारत को गर्व है, पर क्या अन्य सातों सम्मानित कलाकारों को जानना और उनकी कला से परिचित होना हमारा कर्तव्य नहीं है ? इनमें से कुछ तो बिलकुल आधुनिक हैं । नन्दलाल बाबू का नाम तो धीरे-धीरे सभी ने सुन लिया है, पर इन कलाकारों की कला को भी सम्मान मिलना चाहिए । साहित्य या कला किसी एक की निधि नहीं होती । उस पर सबका अधिकार है और सभी को कला का कार्य करने के लिए प्रेरणा की आवश्यकता है । एक ओर जब साहित्य का यह कर्त्तव्य है कि वह समाज को यह बताये कि पहले क्या हो चुका है, तो उससे अधिक महत्त्व की बात यह है कि भावी कलाकारों को प्रेरणा दे जिनके ऊपर हमारा भविष्य निर्भर करता है ।

लोगों का ख्याल है कि कला में आनन्द पाना सार्वजनिक नहीं है और इसमें आनन्द उसी को मिल सकता है जो स्वयं कलाकार है या जिसने थोड़ा-बहुत कला का अध्ययन किया है । कला में प्रवीणता या उसमें रस पाना एक ईश्वरीय वरदान है, यह कथन और भी सत्य प्रतीत होता है जब हम देखते हैं कि आधुनिक समाज में कला को क्या स्थान प्राप्त है । कलाकार जीवन भर रचना का कार्य करता है, पर अक्सर वह समाज में अपना स्थान नहीं बना पाता, न समाज उसके परिश्रम का मूल्य ही देता है । कला की साधना करना कलाकार के लिए जीवन से लड़ना है । कितने ही कलाकार अपने लहू से रचना करके मिट गये, परसमाज उन्हें जानता तक नहीं, उनकी कला का रस लेना तो दूर रहा । ऐसा समाज यह भी कहता है कि कला एक साधना है जिसके लिए मर मिटना कलाकार का कर्तव्य है । बिना बलिदान के कला प्राप्त नहीं हो पाती । इतना ही नहीं, लोगों का विश्वास है कि कलाकार उच्च रचना तभी कर सकता है जब दुनिया भर का दुःख वह भोग ले और तड़पन की ज्वाला में भुजते हुए जब उसके मुँह से आह निकलने लगे, तभी वह सफल रचना कर सकता है । शायद ऐसा समाज इस आह. . . में सबसे अधिक रस पाता है । पाठक क्षमा करेंगे यदि मैं कहूँ कि रोम का शासक विख्यात नीरो सबसे महान् व्यक्ति था और उसे कला की सबसे ऊँची परख थी, इसीलिए वह मनुष्य को खुँखार भूखे शेरों के कटघरों में डालकर उस व्यक्ति के मुँह से निकली हुई आह का रसास्वादन सुनहले